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भगवती सूत्र....
श. ३१ : उ. ४-२८ : सू. २०-३० प्रकार कृष्णलेश्य-क्षुल्लक-कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों की भांति वक्तव्य है, केवल इतना अन्तर है जो उपपात जैसा रत्नप्रभा में बतलाया गया है वह वक्तव्य है, शेष उसी प्रकार वक्तव्य
२१. भन्ते! रत्नप्रभा-पृथ्वी के कापोतलेश्य-क्षुल्लक-कृतयुग्म-नैरयिक-जीव कहां से आकर उपपन्न होते हैं? इसी प्रकार वक्तव्य है। इसी प्रकार शर्कराप्रभा में भी, बालुकाप्रभा में भी इसी प्रकार वक्तव्य है, चारों युग्मों में भी इसी प्रकार वक्तव्य है, केवल इतना अन्तर है-परिमाण (संख्या) जानना चाहिए। (परिमाण) कृष्णलेश्य-उद्देशक की भांति वक्तव्य है। शेष उसी प्रकार वक्तव्य है। २२. भन्ते! वह ऐसा हो है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
पांचवां उद्देशक २३. भन्ते! भवसिद्धिक-क्षुल्लक-कृतयुग्म-नैरयिक-जीव कहां से आकर उपपन्न होते हैं क्या नैरयिक जीवों से....? इसी प्रकार जैसा औधिक (समुच्चय) गमक वैसा ही सम्पूर्ण वक्तव्य है। यावत् 'पर-प्रयोग से उपपन्न नहीं होते' तक। २४. भन्ते! रत्नप्रभा-पृथ्वी के भवसिद्धिक-क्षुल्लक-कृतयुग्म-नैरयिक-जीव कहां से आकर उपपन्न होते हैं...? इसी प्रकार सम्पूर्णतया वक्तव्य है। इसी प्रकार यावत् 'अधःसप्तमी' तक वक्तव्य है। इसी प्रकार भवसिद्धिक-क्षुल्लक-त्र्योज-नैरयिक-जीव भी। इसी प्रकार यावत् कल्योज तक वक्तव्य है, केवल इतना अन्तर है-परिमाण (संख्या) ज्ञातव्य है, परिमाण (संख्या) जैसे प्रथम उद्देशक में पहले बतलाया गया है। २५. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
छट्ठा उद्देशक २६. भन्ते! कृष्णलेश्य-भवसिद्धिक-क्षुल्लक-कृतयुग्म-नैरयिक-जीव कहां से आकर उपपन्न होते हैं? इसी प्रकार जैसा औधिक (समुच्चय)-कृष्णलेश्य-उद्देशक में बताया गया है वैसा
सम्पूर्णतया चारों युग्मों में भी वक्तव्य है यावत्२७. भन्ते! अधःसप्तमी-पृथ्वी के कृष्णलेश्य-क्षुल्लक-कल्योज-नैरयिक-जीव कहां से आकर
उपपन्न होते हैं......? उसी प्रकार वक्तव्य है। २८. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
सातवां से अट्ठाइसवां उद्देशक (सातवां उद्देशक) २९. नीललेश्य-भवसिद्धिक चारों ही युग्मों में (नैरयिक-जीव) उसी प्रकार वक्तव्य है जैसा
औधिक (समुच्चय)-नीललेश्य-उद्देशक में बताया गया है। ३०. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। इसी प्रकार भगवान् गौतम यावत् संयम
और तप से अपने आप को भावित करते हुए विहरण कर रहे हैं।
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