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श. ३१ : उ. २,४ : सू. १२-२०
भगवती सूत्र प्रकार औधिक-गमक (समुच्चय) की भांति वक्तव्य हैं। यावत् 'परप्रयोग से उपपन्न नहीं होते' तक, केवल इतना अन्तर है-उपपात जैसे पण्णवणा के छट्टे पद 'अवक्रान्ति' (सू. ७७) में बतलाया गया है वैसा समझना चाहिए। धूमप्रभा-पृथ्वी के नैरयिकों के उपपात की पृच्छा।
शेष वैसे ही समझना चाहिए। (जैसा अवक्रान्ति-पद में बताया गया है) १३. भन्ते! धूमप्रभा-पृथ्वी के कृष्णलेश्य-क्षुल्लक-कृतयुग्म-नैरयिक-जीव कहां से आकर उपपन्न होते हैं? इसी प्रकार सम्पूर्ण आलापक वक्तव्य है। इसी प्रकार तमा-पृथ्वी में (छट्ठी नारकी) भी अधःसप्तमी-पृथ्वी में भी बतलाना चाहिए, केवल इतना अन्तर है-सर्वत्र उपपात जैसे पण्णवणा के छठे पद 'अवक्रान्ति' (सू. ७७-८०) में बतलाया गया है वैसा समझना चाहिए। १४. भन्ते! कृष्णलेश्य-क्षुल्लक-त्र्योज-नैरयिक-जीव कहां से आकर उपपन्न होते हैं? इसी प्रकार वक्तव्य है, केवल इतना अन्तर है-(उनकी संख्या) तीन, सात, ग्यारह, पन्द्रह, संख्येय अथवा असंख्येय हैं। शेष उसी प्रकार वक्तव्य है। इसी प्रकार यावत् अधःसप्तमी तक भी वक्तव्य है। १५. भन्ते! कृष्णलेश्य-क्षुल्लक-द्वापरयुग्म-नैरयिक-जीव कहां से आकर उपपन्न होते हैं ? इसी प्रकार वक्तव्य है, केवल इतना अन्तर है-(उनकी संख्या) दो, छह, दस अथवा चौदह है। (संख्येय अथवा असंख्येय जीव उपपन्न होते हैं)। शेष उसी प्रकार वक्तव्य है। इसी प्रकार धूमप्रभा में भी यावत् 'अधःसप्तमी' तक वक्तव्य हैं। १६. भन्ते! कृष्णलेश्य-क्षुल्लक-कल्योज-नैरयिक-जीव कहां से आकर उपपन्न होते हैं? इसी प्रकार वक्तव्य है, केवल इतना अन्तर है-(उनकी संख्या) एक, पांच, नौ, तेरह, संख्येय अथवा असंख्येय उपपन्न होते हैं, शेष उसी प्रकार वक्तव्य है। इसी प्रकार धूमप्रभा (पांचवीं नारकी) में भी, तमःप्रभा (छट्ठी नारकी) में भी, अधःसप्तमी में भी वक्तव्य है। १७. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
तीसरा उद्देशक १८. भन्ते! नीललेश्य-क्षुल्लक-कृतयुग्म-नैरयिक-जीव कहां से आकर उपपन्न होते हैं? इसी प्रकार कृष्णलेश्य-क्षुल्लक-कृतयुग्म की भांति वक्तव्य है, केवल इतना अन्तर है-जो उपपात जैसा बालुकाप्रभा में बतलाया गया है वह वक्तव्य है, शेष उसी प्रकार वक्तव्य है। बालुकाप्रभा-पृथ्वी में नीललेश्य-क्षुल्लक-कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों का उपपात उसी प्रकार वक्तव्य है। पंकप्रभा में भी इसी प्रकार, धूमप्रभा में भी इसी प्रकार वक्तव्य है। चारों युग्मों में भी इसी प्रकार वक्तव्य है, केवल इतना अन्तर है-परिमाण (संख्या) जानना चाहिए। परिमाण (संख्या) कृष्णलेश्य-उद्देशक की भांति वक्तव्य है। शेष उसी तरह वक्तव्य है। १९. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
चौथा उद्देशक २०. भन्ते! कापोतलेश्य-क्षुल्लक-कृतयुग्म-नैरयिक-जीव कहां से आकर उपपन्न होते हैं? इसी
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