________________
श. ३० : उ. १ : सू. २९-३२
भगवती सूत्र प्रकार के आयुष्य का बन्ध करते हैं। जिस प्रकार कृष्ण-लेश्या वाले जीवों के विषय में बताया गया है वैसे ही नील-लेश्या वाले भी, कापोत-लेश्या वाले भी जीवों के विषय में वक्तव्य है। तेजो-लेश्या वाले पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव लेश्या-युक्त-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों की भांति वक्तव्य है, केवल इतना अन्तर है-अक्रियावादी-, अज्ञानिकवादी- और वैनयिकवादी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव नैरयिक-आयु का बन्ध नहीं करते, तिर्यग्योनिक-आयु का भी बन्ध करते हैं, मनुष्य-आयु का भी बन्ध करते हैं, देव-आयु का भी बन्ध करते हैं। इसी प्रकार पद्म-लेश्या-वाले पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव भी वक्तव्य हैं। इसी प्रकार शुक्ल-लेश्या वाले पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव भी वक्तव्य हैं। कृष्णपाक्षिक-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव तीनों समवसरणों में (अक्रियावादी, अज्ञानिकवादी और वैनयिकवादी) चारों प्रकार के आयुष्य का बन्ध करते हैं। शुक्लपाक्षिक-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव लेश्या-युक्त-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों की भांति वक्तव्य हैं। जैसे मनःपर्यव-ज्ञानी-जीव वैमानिक-देवों का आयुष्य बन्ध करते हैं वैसे ही सम्यग्-दृष्टि-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव के विषय में जानना चाहिए। मिथ्या-दृष्टि-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक जीव कृष्णपाक्षिक की भांति वक्तव्य हैं। (अज्ञानिकवादी एवं वैनयिकवादी) नैरयिक जीवों की भांति सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव एक भी आयुष्य का बन्ध नहीं करते। ज्ञानी (समुच्चय) यावत् अवधि-ज्ञानी-पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक-जीव तक सम्यग्-दृष्टि-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों की भांति वक्तव्य हैं। अज्ञानी (समुच्चय)- यावत् विभंग-ज्ञानी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक जीवों तक कृष्णपाक्षिक-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों की भांति वक्तव्य हैं। शेष सभी पदों के यावत् अनाकारोपयुक्त-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों तक जैसे लेश्या-युक्त पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों के विषय में बताया गया वैसे ही वक्तव्य हैं। पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों की जैसे वक्तव्यता बताई गई वैसी वक्तव्यता मनुष्यों की भी वक्तव्य है, केवल इतना अन्तर है-मनःपर्यव-ज्ञानी- तथा नो-संज्ञोपयुक्त-मनुष्यों के विषय में जैसे सम्यग-दृष्टि-तिर्यग्योनिक-जीवों के विषय में बताया वैसे ही वक्तव्य है। लेश्या-रहित, केवलज्ञानी, अवेदक, अकषायी और अयोगी-ये सारे एक भी आयुष्य का बन्ध नहीं करते। जैसे
औधिक (समुच्चय) जीवों के विषय में बताया गया वैसे ही शेष सब पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों की भांति वक्तव्य हैं। वानमन्तर-देवों, ज्योतिषिक-देवों तथा वैमानिक-देवों के जीव असुरकुमार-देवों के जीवों की तरह वक्तव्य हैं। ३०. भन्ते! क्रियावादी-जीव क्या भवसिद्धिक है? अभवसिद्धिक हैं?
गौतम! क्रियावादी-जीव भवसिद्धिक हैं, अथवसिद्धिक नहीं हैं। ३१. भन्ते! अक्रियावादी-जीव क्या भवसिद्धिक है....पृच्छा। गौतम! अक्रियावादी-जीव भवसिद्धिक भी हैं, अभवसिद्धिक भी है। इसी प्रकार
अज्ञानिकवादी-जीव भी और वैनयिकवादी-जीव भी समझने चाहिए। ३२. भन्ते! लेश्या-युक्त-क्रियावादी-जीव क्या भवसिद्धिक है.....? पृच्छा। गौतम! लेश्या-युक्त-क्रियावादी-जीव भवसिद्धिक हैं, अभवसिद्धिक नहीं हैं।
८८६