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भगवती सूत्र
श. २५ : उ. ७ : सू. ५८१-५८८ ५८१. प्रायश्चित्त क्या है?
प्रायश्चित्त दस प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे—आलोचना-योग्य-गुरु के समक्ष अपने दोषों का निवेदन, यावत् पारांचिक-योग्य (भ. २५/५५६)। यह है प्रायश्चित्त। ५८२. विनय क्या है? विनय सात प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-१. ज्ञान-विनय, २. दर्शन-विनय, ३. चारित्र-विनय, ४. मन-विनय, ५. वचन-विनय, ६. काय-विनय, ७. लोकोपचार-विनय । ५८३. ज्ञान-विनय क्या है?
ज्ञान-विनय पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-१. आभिनिबोधिक-ज्ञान-विनय २. श्रुत-ज्ञान-विनय ३. अवधि-ज्ञान-विनय ४. मनःपर्यव-ज्ञान-विनय ५. केवल-ज्ञान-विनय। यह है ज्ञान-विनय। ५८४. दर्शन-विनय क्या है? दर्शन-विनय दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-शुश्रुषा-विनय और अनत्याशातना-विनय
-आशातना न करना। ५८५. शुश्रूषा-विनय क्या है? शुश्रूषा-विनय अनेक प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-सत्कार-सम्मान, कृतिकर्म, अभ्युत्थान, अञ्जलिप्रग्रह, आसन-अभिग्रह, आसन-अनुप्रदान, आते हुए के सामने जाना, स्थित की पर्युपासना करना, जाते हुए को पहुंचाना-आदि। यह है शुश्रुषा-विनय । ५८६. अनत्याशातना-विनय क्या है?
अनत्याशातना-विनय पैंतालीस प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे१. अर्हतों की अनत्याशातना। २. अर्हत्-प्रज्ञप्त-धर्म की अनत्याशातना। ३. आचार्यों की अनत्याशातना। ४. उपाध्यायों की अनत्याशातना। ५. स्थविरों की अनत्याशातना। ६. कुल की अनत्याशातना। ७. गण की अनत्याशातना। ८. संघ की अनत्याशातना। ९. क्रिया की अनत्याशातना। १०. संभोज (पारस्परिक संबंध) की अनत्याशातना। ११. आभिनिबोधिक-ज्ञान की अनत्याशातना यावत्। १२. श्रुत-ज्ञान, १३. अवधि-ज्ञान, १४. मनःपर्यव-ज्ञान, १५. केवल-ज्ञान की अनत्याशातना-इन (पन्द्रह) का भक्तिपूर्वक बहुमान करना, इन पन्द्रह का वर्ण-संज्वलन-सद्भूतगुणवर्णन के द्वारा यशोदीपन करना। यह है अनत्याशातना विनय । यह है दर्शन-विनय। ५८७. चारित्र-विनय क्या है? चारित्र-विनय पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-सामायिक-चारित्र-विनय यावत् यथाख्यात-चारित्र-विनय (भ. २५/४५३)। यह है चारित्र-विनय । ५८८. मन-विनय क्या है?
मन-विनय दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-१. प्रशस्त-मन-विनय २. अप्रशस्त-मन-विनय।
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