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भगवती सूत्र
श. २५ : उ. ७ : सू. ५१५-५२२ -प्रकृतियों की उदीरणा करता है तो वह आयुष्य-, वेदनीय- और मोहनीय-कर्म को छोड़कर पांच कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता है। ५१६. यथाख्यात-संयत .............? पृच्छा (भ. २५/५१४)। गौतम! पांच प्रकार की कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता है अथवा दो प्रकार की कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता है अथवा उदीरणा नहीं भी करता। पांच कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता है तो आयुष्य-, वेदनीय- और मोहनीय-कर्म को छोड़कर (पांच कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता है।) (यथाख्यात-संयत के विषय में) शेष निर्ग्रन्थ की भांति वक्तव्यता (भ. २५/४०१)। उपसंपद्-हान-पद ५१७. भन्ते! सामायिक-संयतत्व का परित्याग करता हुआ सामयिक-संयत किसका परित्याग करता है, किसे उपसंपन्न करता है? गौतम! वह सामायिक-संयतत्व का परित्याग करता है, छेदोपस्थापनिक-संयतत्व अथवा सूक्ष्मसम्पराग-संयतत्व अथवा असंयम अथवा संयमासंयम को उपसंपन्न करता है। ५१८. छेदोपस्थापनिक .............? पृच्छा (भ. २५/५१७)। गौतम! छेदोपस्थापनिक-संयतत्व का परित्याग करता है, सामायिक-संयतत्व अथवा परिहार-विशुद्धिक-संयतत्व अथवा सूक्ष्मसम्पराय-संयतत्व अथवा असंयम अथवा संयमासंयम को उपसंपन्न करता है। ५१९. परिहारविशुद्धिक-संयत.........? पृच्छा (भ. २५/५१७)। गौतम! परिहारविशुद्धिक-संयतत्व का परित्याग करता है, छेदोपस्थापनिक-संयतत्व अथवा
असंयम को उपसंपन्न करता है। ५२०. सूक्ष्मसम्पराय-संयत ...........? पृच्छा (भ. २५/५१७)। गौतम! सूक्ष्मसम्पराय-संयतत्व का परित्याग करता है, सामायिक-संयतत्व अथवा
छेदोपस्थापनिक-संयतत्व अथवा यथाख्यात-संयतत्व अथवा असंयम को उपसंपन्न करता है। ५२१. यथाख्यात-संयत ........? पृच्छा (भ. २५/५१७)। गौतम! यथाख्यात-संयतत्व का परित्याग करता है, सूक्ष्मसम्पराय-संयतत्व अथवा असंयम
अथवा सिद्धि-गति को उपसंपन्न करता है। संज्ञा-पद ५२२. भन्ते! सामायिक-संयत क्या संज्ञोपयुक्त होता है? नो-संज्ञोपयुक्त होता है? गौतम! संज्ञोपयुक्त होता है, बकुश की भांति वक्तव्यता (भ. २५/४१०)। इसी प्रकार यावत् परिहारविशुद्धिक-संयत की वक्तव्यता। सूक्ष्मसम्पराय-संयत और यथाख्यात-संयत की पुलाक की भांति वक्तव्यता (भ. २५/४०९)।
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