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श. २५ : उ. ७ : सू. ५०७-५१५
भगवती सूत्र ५०७. सूक्ष्मसम्पराय-संयत कितने काल तक हीयमान-परिणाम वाला होता है?
पूर्ववत् (भ. २५/५०६)। ५०८. भन्ते! यथाख्यात-संयत कितने काल तक वर्धमान-परिणाम वाला होता है?
गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहुर्त, उत्कृष्टतः भी अन्तर्मुहर्त। ५०९. (भंते!) यथाख्यात-संयत कितने काल तक अवस्थित-परिणाम वाला होता है?
गौतम! जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः देशोन-कोटि-पूर्व । बन्ध-पद ५१०. भन्ते! सामायिक-संयत कितनी कर्म-प्रकृतियों का बन्ध करता है? गौतम! सात प्रकार की कर्म-प्रकृतियों का बंध करता है अथवा आठ प्रकार की कर्म-प्रकृतियों का बंध करता है, बकुश की भांति वक्तव्यता (भ. २५/३९१)। इसी प्रकार यावत् परिहारविशुद्धिक-संयत की वक्तव्यता। ५११. सूक्ष्मसम्पराग-संयत .........? पृच्छा (भ. २५/५१०)। गौतम! आयुष्य- और मोहनीय-कर्म को छोड़कर छह प्रकार की कर्म-प्रकृतियों का बंध करता है। यथाख्यात-संयत की स्नातक की भांति वक्तव्यता (भ. २५/३९४)। वेदन-पद ५१२. भन्ते! सामायिक-संयत कितनी कर्म-प्रकृतियों का वेदन करता है? गौतम! नियमतः आठ कर्म-प्रकृतियों का वेदन करता है। इसी प्रकार यावत् सूक्ष्मसम्पराय-संयत की वक्तव्यता। ५१३. यथाख्यात संयत........? पृच्छा (भ. २५/५१२)।। गौतम! सात प्रकार की कर्म-प्रकृतियों का वेदन करता है अथवा चार प्रकार की कर्म-प्रकृतियों का वेदन करता है। वह सात कर्म-प्रकृतियों का वेदन करता है तो मोहनीय कर्म को छोड़कर सात कर्म-प्रकृतियों का वेदन करता है, चार कर्म-प्रकृतियों का वेदन करता है तो वेदनीय,
आयुष्य, नाम और गोत्र-इन चार कर्म-प्रकृतियों का वेदन करता है। उदीरणा-पद ५१४. भन्ते! सामायिक-संयत कितनी कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता है? गौतम! बकुश-निर्ग्रन्थ की तरह सात प्रकार की कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता है........ (भ. २५/३९९)। इसी प्रकार यावत् परिहारविशुद्धिक-संयत की वक्तव्यता। ५१५. सूक्ष्मसम्पराय-संयत .........? पृच्छा (भ. २५/५१४)। गौतम! छह प्रकार की कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता है अथवा पांच प्रकार की कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता है। छह कर्म-प्रकृतियों की उदीरणा करता है तो वह आयुष्य- और वेदनीय-कर्म को छोड़कर छह कर्म-प्रकृतियां की उदीरणा करता है, पांच कर्म
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