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भगवती सूत्र
श. २५ : उ. ६,७ : सू. ४४७-४५३ एक अथवा दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः पृथक्त्व-सौ (दो सौ से नौ सो तक) होते हैं। पूर्व प्रतिपन्नक की अपेक्षा जघन्यतः पृथक्त्व-सौ-करोड़ (दो सौ करोड़ से नौ सौ करोड़ तक), उत्कृष्टतः भी पृथक्त्व-सौ-करोड़ तक होते हैं। इसी प्रकार प्रतिषेवणा-कुशील की भी वक्तव्यता। ४४८. कषाय-कुशील ................? पृच्छा (भ. २५/४४६)। गौतम! प्रतिपद्यमान की अपेक्षा स्यात् होते हैं, स्यात् नहीं होते। यदि होते हैं तो जघन्यतः एक अथवा दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः पृथक्त्व-हजार (दो हजार से नौ हजार तक) होते हैं। पूर्व प्रतिपन्नक की अपेक्षा जघन्यतः पृथक्त्व-हजार-करोड़ तक, उत्कृष्टतः भी पृथक्त्व-हजार-करोड़ होते हैं। ४४९. निर्ग्रन्थ .......? पृच्छा (भ. २५/४४६)। गौतम! निर्ग्रन्थ प्रतिपद्यमान की अपेक्षा स्यात् होते हैं, स्यात् नहीं होते। यदि होते हैं तो जघन्यतः एक अथवा दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः एक सौ बासठ होते हैं-एक सौ आठ निर्ग्रन्थ क्षपक-श्रेणी वाले होते हैं और चौपन निर्ग्रन्थ उपशम-श्रेणी वाले होते हैं। निर्ग्रन्थ पूर्व पर्याय की अपेक्षा से स्यात् होते हैं, स्यात् नहीं होते। यदि होते हैं तो जघन्यतः एक अथवा दो अथवा तीन, उत्कर्षतः पृथक्त्व-सौ (दो सौ से नो सौ तक) होते हैं। पूर्व प्रतिपन्नक की अपेक्षा से स्यात् होते हैं, स्यात् नहीं होते। यदि होते हैं तो जघन्यतः एक अथवा दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः पृथक्त्व-सौ होते हैं। ४५०. स्नातक .................? पृच्छा (भ. २५/४४६)। गौतम! स्नातक प्रतिपद्यमान की अपेक्षा स्यात् होते हैं, स्यात् नहीं होते। यदि होते हैं तो जघन्यतः एक अथवा दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः एक सौ आठ होते हैं। पूर्व-प्रतिपन्नक की अपेक्षा जधन्यतः पृथक्त्व-कोटि। उत्कृष्टतः भी पृथक्त्व-कोटि (दो करोड़ से नौ करोड़ तक) होते हैं। अल्पबहुत्व-पद ४५१. भन्ते! इन पुलाक-, बकुश-, प्रतिषेवणा-कुशील-, कषायकुशील-, निर्ग्रन्थ- और स्नातक-निर्ग्रन्थों में कौन-किनसे अल्प? बहुत? तुल्य? या विशेषाधिक हैं? । गौतम! निर्ग्रन्थ सबसे अल्प हैं, पुलाक इनसे संख्येय-गुणा हैं, स्नातक इनसे संख्येय-गुणा हैं, बकुश इनसे संख्येय-गुणा हैं, प्रतिषेवणा-कुशील-निर्ग्रन्थ इनसे संख्येय-गुणा हैं, कषायकुशील इनसे संख्येय-गुणा हैं। ४५२. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते वह ऐसा ही है। इस प्रकार भगवान् गौतम यावत् संयम और तप से अपने आप को भावित करते हुए विहरण कर रहे हैं।
सातवां उद्देशक प्रज्ञापना-पद ४५३. भन्ते! संयत कितने प्रज्ञप्त हैं? गौतम! संयत पांच प्रज्ञप्त हैं, जैसे-सामायिक-संयत, छेदोपस्थापनीय-संयत, परिहार
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