________________
श. २५ : उ. ६ : सू. ४३८-४४७
गौतम ! एक भी समुद्घात नहीं होता ।
.? पृच्छा (भ. २५/४३५)।
४३९. स्नातक
गौतम ! एक केवलि - समुद्घात प्रज्ञप्त है।
क्षेत्र - पद
४४०. भन्ते ! क्या पुलाक-निर्ग्रन्थ लोक के संख्यातवें भाग में होता है ? असंख्यातवें भाग में होता है ? संख्यात भागों में होता है ? असंख्यात भागों में होता है ? सर्वलोक में होता है ? गौतम ! लोक के संख्यातवें भाग में नहीं होता, असंख्यातवें भाग में होता है, संख्यात भागों में नहीं होता, असंख्यात भागों में नहीं होता, सर्व - लोक में नहीं होता। इसी प्रकार यावत् निर्ग्रन्थ की वक्तव्यता ।
४४१. स्नातक
.? पृच्छा (भ. २५/४४०)।
गौतम ! लोक के संख्यातवें भाग में नहीं होता, असंख्यातवें भाग में होता है, संख्यात भागों में नहीं होता, असंख्यात भागों में होता है, सर्व लोक में भी होता है ।
स्पर्शना-पद
भगवती सूत्र
४४२. भन्ते ! क्या पुलाक लोक के संख्यातवें भाग का स्पर्श करता है ? असंख्यातवें भाग का स्पर्श करता है ? इस प्रकार अवगाहन की भांति स्पर्शना भणितव्य है यावत् स्नातक की
वक्तव्यता ।
भाव-पद
४४३. भन्ते ! पुलाक किस भाव में होता है ?
गौतम! क्षायोपशमिक-भाव में होता है। इसी प्रकार यावत् कषाय-कुशील की वक्तव्यता ।
४४४. निर्ग्रन्थ के विषय में पृच्छा (भ. २५/४४३) ।
गौतम ! औपशमिक-भाव में होता है अथवा क्षायिक भाव में होता है।
.? पृच्छा (भ. २५/४४३)।
४४५. स्नातक
गौतम ! क्षायिक भाव में होता है।
परिमाण - पद
४४६. भन्ते ! पुलाक एक समय में कितने होते हैं ?
गौतम ! प्रतिपद्यमान की अपेक्षा स्यात् होते हैं, स्यात् नहीं होते । यदि होते हैं तो जघन्यतः एक अथवा दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः पृथक्त्व - सौ ( दो सौ से नौ सौ तक) होते हैं । पुलाक पूर्व प्रतिपन्नक पर्याय की अपेक्षा स्यात् होते हैं, स्यात् नहीं होते । यदि होते हैं तो जघन्यतः एक अथवा दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः पृथक्त्व - हजार ( दो हजार से नौ हजार तक) होते हैं।
४४७. भन्ते ! बकुश एक समय कितने होते हैं ?
गौतम ! प्रतिपद्यमान की अपेक्षा स्यात् होते हैं, स्यात् नहीं होते । यदि होते हैं तो जघन्यतः
८३८