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श. २४ : उ. २४ : सू. ३४०-३४५
भगवती सूत्र पल्योपम। शेष पूर्ववत्। काल की अपेक्षा जघन्यतः दो पल्योपम, उत्कृष्टतः भी दो पल्योपम–इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। (सातवें से नवें गमक तक) ३४१. वही अपनी उत्कृष्ट काल की स्थिति में उत्पन्न तिर्यंच-यौगलिक सौधर्म-देव के रूप में उपपन्न होता हैं, प्रथम गमक के सदृश (सातवां, आठवां और नवां) तीन गमक वक्तव्य हैं, केवल इतना विशेष है-स्थिति और काल की अपेक्षा यथोचित ज्ञातव्य है। उन्यासीवां आलापक : सौधर्म देवों (प्रथम देवलोक) में संख्यात वर्ष की आयु वाले
संज्ञी-तिर्यञ्च-पञ्चेन्द्रि-जीवों का उपपात-आदि ३४२. यदि संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक सौधर्म-देव में उपपन्न होते हैं? जिस प्रकार संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव के असुरकुमार-देव में उपपद्यमान की भांति नव गमक (भ. २४/१३१,१३२,१३३) वैसे ही नौ गमक हैं, केवल इतना विशेष है-स्थिति और कायसंवेध यथोचित ज्ञातव्य हैं। जब अपनी जघन्य काल की स्थिति उत्पन्न पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च-यौगलिक सौधर्म-देव के रूप में उपपन्न होता है तब तीनों ही गमकों (चौथे, पांचवें और छटे) में जीव सम्यग्-दृष्टि भी होता है, मिथ्या-दृष्टि भी होता है, सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि नहीं होता। ३४३. यदि मनुष्यों से सौधर्म-देव में उपपन्न होते हैं? भेद ज्योतिष्क-देव में, (भ. २४/
३३१) उपपद्यमान की भांति वक्तव्य हैं यावत्अस्सीवां आलापक : सौधर्म-देवों में असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्य
(यौगलिकों) का उपपात-आदि ३४४. भंते! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी-मनुष्य, जो सौधर्म-देव के रूप में उपपन्न होने योग्य है? इसी प्रकार जैसे असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव के सौधर्म-देव में उपपद्यमान बतलाये गये हैं (भ. २४/३३६-३४१), वही सात गमक यहां वक्तव्य है, केवल इतना विशेष है-पहले दो गमक (प्रथम और द्वितीय) में अवगाहना-जघन्यतः एक गव्यूत, उत्कृष्टतः तीन गव्यूत। तीसरे गमक में जघन्यतः तीन गव्यूत, उत्कृष्टतः भी तीन गव्यूत। चौथे गमक में जघन्यतः एक गव्यूत, उत्कृष्टतः भी एक गव्यूत। अन्तिम तीन गमकों (सातवें, आठवें और नवें) में जघन्यतः तीन गव्यूत, उत्कृष्टतः
भी तीन गव्यूत। शेष निरवशेष पूर्ववत् । इक्कासीवां आलापक : सौधर्म-देवों में संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्यों का
उपपात-आदि ३४५. यदि संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्यों से सौधर्म-देव के रूप में उपपन्न होता है? इसी प्रकार जैसे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्यों का असुरकुमार-देव में उपपद्यमान (भ. २४/१३९-१४१) की भांति नौ गमक यहां वक्तव्य हैं। केवल इतना विशेष है सौधर्म-देव की स्थिति और कायसंवेध यथोचित ज्ञातव्य हैं। शेष पूर्ववत्।
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