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भगवती सूत्र
श. २४ : उ. २४ : सू. ३३६-३४० अठहत्तरवां आलापक : सौधर्म-देवों (प्रथम देवलोक) में असंख्यात वर्ष की आयु वाले
संज्ञी-तिर्यंच-पचेन्द्रिय (यौगलिकों) का उपपात-आदि (पहला गमक) ३३६. भन्ते! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक (यौगलिक) जो सौधर्म-देव में उपपन्न होने योग्य है, भन्ते! वह कितने काल की स्थिति वाले सौधर्म-देव के रूप में उपपन्न होता है? गौतम! जघन्यतः एक पल्योपम की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः तीन पल्योपम की स्थिति वाले सौधर्म देव के रूप में उपपन्न होता है। ३३७. भन्ते! वे जीव एक समय में कितने उपपन्न होते हैं?......शेष ज्योतिष्क-देवों में
उपपद्यमान संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों (भ. २४/३२४) की भांति वक्तव्य है, केवल इतना विशेष है-सम्यग्-दृष्टि भी होते हैं, मिथ्या-दृष्टि भी होते हैं, सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि नहीं होते। ज्ञानी भी होते हैं. अज्ञानी भी होते हैं, नियमतः दो ज्ञान अथवा दो अज्ञान होते हैं। स्थिति–जघन्यतः एक पल्योपम, उत्कृष्टतः तीन पल्योपम। इसी प्रकार अनुबन्ध भी। शेष पूर्ववत्। काल की अपेक्षा जघन्यतः दो पल्योपम, उत्कृष्टतः छह पल्योपम-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। (दूसरा गमक) ३३८. वही (असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक (यौगलिक)) (औधिक आयुष्य वाला) जघन्य काल की स्थिति वाले सौधर्म-देव में उपपन्न होता है, वही वक्तव्यता (भ. २४/३३६-३३७), केवल इतना विशेष है-काल की अपेक्षा जघन्यतः दो पल्योपम, उत्कृष्टतः चार पल्योपम- इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। (तीसरा गमक) ३३९. वही (असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक (यौगलिक) (औधिक आयुष्य वाला) उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले सौधर्म-देव में उपपन्न होता है, जघन्यतः तीन पल्योपम की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः भी तीन पल्योपम की स्थिति वाले सौधर्म-देव के रूप में उपपन्न होता है, वही वक्तव्यता (भ. २४/३३८), केवल इतना विशेष है-स्थिति-जघन्यतः तीन पल्योपम, उत्कृष्टतः भी तीन पल्योपम। शेष पूर्ववत्। काल की अपेक्षा जघन्यतः छह पल्योपम, उत्कृष्टतः भी छह पल्योपम इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। (छट्ठा गमक) ३४०. वही अपनी जघन्य काल की स्थिति में उपपन्न तिर्यंच-यौगलिक जघन्यतः एक पल्योपम
की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः भी एक पल्योपम की स्थिति वाले सौधर्म-देव के रूप में उपपन्न होता है (भ. २४/३३९) वही वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है-अवगाहना-जघन्यतः पृथक्त्व-धनुष, उत्कृष्टतः दो गव्यूत। स्थिति–जघन्यतः एक पल्योपम, उत्कृष्टतः भी एक
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