________________
भगवती सूत्र
श. २४ : उ. २३ : सू. ३२४-३२९ केवल इतना विशेष है -स्थिति - जघन्यतः पल्योपम-का - आठवां-भाग, उत्कृष्टतः तीन पल्योपम। इसी प्रकार अनुबन्ध भी । शेष पूर्ववत् केवल इतना विशेष है- काल की अपेक्षा - जघन्यतः दो बार पल्योपम- का आठवां - भाग, (एक बार पल्योपम-का-आठवां-भाग तिर्यञ्च-यौगलिक के सम्बन्ध में और दूसरी बार पल्योपम - का-आठवां-भाग तारा- ज्योतिषी-देव के सम्बन्ध में), उत्कृष्टतः एक लाख वर्ष - अधिक -चार - पल्योपम (तीन पल्योपम तिर्यञ्च यौगलिक के सम्बन्ध में और एक लाख-वर्ष - अधिक - एक पल्योपम चन्द्र-ज्योतिषी-देव के सम्बन्ध में ) - इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति - आगति करता है ।
(दूसरा गमक)
३२५. वही (असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी - पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक - ) जीव जघन्य काल की स्थिति वाले ज्योतिष्क - देव में उपपन्न होता है, जघन्यतः पल्योपम-का-आठवें-भाग की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः भी पल्योपम के आठवें भाग की स्थिति वाले ज्योतिष्क- देव के रूप में उपपन्न होता है । वही वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है -काल की अपेक्षा यथोचित ज्ञातव्य है ।
-
(तीसरा गमक)
३२६. वही (असंख्यात वर्ष की आयुवाला संज्ञी - पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक - ) जीव उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले ज्योतिष्क - देव में उपपन्न होता है, वही वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है -स्थिति- जघन्यतः एक लाख वर्ष-अधिक - एक पल्योपम, उत्कृष्टतः तीन पल्योपम। इसी प्रकार अनुबन्ध भी काल की अपेक्षा जघन्यतः दो लाख वर्ष अधिकक-दो- पल्योपम, उत्कृष्टतः एक लाख वर्ष - अधिक-चार - पल्योपम ।
-
(चौथा गमक)
३२७. वही अपनी जघन्य काल की स्थिति में उत्पन्न यौगलिक - तिर्यञ्च जघन्यतः पल्योपम-के-आठवें भाग की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः पल्योपम-के-आठवें भाग की स्थिति वाले
ज्योतिष्क - देव के रूप में उपपन्न होगा ।
३२८. भन्ते ! वे जीव एक समय में कितने उपपन्न होते हैं ? वही वक्तव्यता (भ. २४/ ३२६) केवल इतना विशेष है - अवगाहना - जघन्यतः पृथक्त्व - धनुष, उत्कृष्टतः कुछ अधिक अट्ठारह सौ धनुष । स्थिति - जघन्यतः पल्योपम का आठवां भाग, उत्कृष्टतः भी पल्योपम-का-आठवां भाग । इसी प्रकार अनुबन्ध भी । शेष पूर्ववत् । काल की अपेक्षा से - जघन्यतः दो बार पल्योपम-का-आठवां-भाग, उत्कृष्टतः भी दो बार पल्योपम का आठवां भाग - इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति आगति करता है । जघन्य काल की स्थिति वाले जीव के यही एक ही गमक है ( पांचवा, छट्टा गमक नहीं होता) ।
-
(सातवें से नवां गमक)
३२९. वही अपनी उत्कृष्ट काल स्थिति में उत्पन्न यौगलिक - तिर्यञ्च ज्योतिष्क- देव के रूप में उपपन्न होता है। वही औधिक गमक की भांति वक्तव्यता । (द्वितीय गमक की अष्टम
७७३