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भगवती सूत्र
श. २४ : उ. २० : सू. २६१-२६६ गौतम! संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों से उत्पन्न होते हैं,
असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों से उत्पन्न नहीं होते । २६२. (भन्ते!) यदि संख्यात वर्ष की आयु वाले (संज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव से
आकर उत्पन्न होता है) यावत् तो क्या संख्यात वर्ष की आयु वाले पर्याप्त-संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों से उत्पन्न होते हैं? संख्यात वर्ष की आयु वाले अपर्याप्त-संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं? (गौतम!) दोनों से ही। (संख्यात वर्ष की आयु वाले पर्याप्त-संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों और संख्यात वर्ष की आयु वाले अपर्याप्त-संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों दोनों से उत्पन्न होते हैं।) (पहला गमक : औधिक और औधिक) २६३. भन्ते! संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव, जो पञ्चेन्द्रिय
-तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होने योग्य है, भन्ते! वह कितने काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यक्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है?
गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः तीन पल्योपम की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यक्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है। २६४. भन्ते! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? अवशेष इसी के संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों के रत्नप्रभा में उपपद्यमान के प्रथम गमक की भांति वक्तव्यता (भ. २४/५८-६२), केवल इतना विशेष है-अवगाहना-जघन्यतः अंगुल-का-असंख्यातवां-भाग, उत्कृष्टतः एक हजार योजन। शेष पूर्ववत्। यावत् भवादेश तक। काल की अपेक्षा (कायसंवेध) जघन्यतः दो अन्तर्महत, उत्कष्टतः पृथक्त्व-कोटि-पर्व-अधिक-तीन-पल्योपम-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। (दूसरा गमक : औधिक और जघन्य) २६५. (भन्ते!) वही संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव जघन्य काल की स्थिति वाले पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है। वही वक्तव्यता (भ. २४/२६३), केवल इतना विशेष है-काल की अपेक्षा जघन्यतः दो अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः चार-अन्तर्मुहूर्त
-अधिक-चार-कोटि-पूर्व। (तीसरा गमक : औधिक और उत्कृष्ट) २६६. (भन्ते!) वही संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में जघन्यतः तीन पल्योपम की स्थितिवाले, उत्कृष्टतः भी तीन पल्योपम की स्थिति वाले में उत्पन्न होता है, वही वक्तव्यता (भ. २४/२६५), केवल इतना विशेष है-परिमाण-जघन्यतः एक अथवा दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः संख्येय उत्पन्न होते हैं। अवगाहना-जघन्यतः अंगुल-का-असंख्यातवां-भाग, उत्कृष्टतः एक हजार योजन । शेष पूर्ववत् यावत् अनुबन्ध-द्वार तक। भव की अपेक्षा दो भव-ग्रहण। काल की अपेक्षा-जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त-अधिक-तीन-पल्योपम, उत्कृष्टतः कोटि-पूर्व-अधिक-तीन-पल्योपम।
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