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श. १९ : उ. ७,८ : सू. ७१-८१
भगवती सूत्र गौतम! ज्योतिष्क-विमानावास असंख्येय लाख प्रज्ञप्त हैं। ७२. भंते! वे किंमय-किससे बने हुए हैं?
गौतम! वे सर्व-स्फटिक-रत्नमय और स्वच्छ हैं। शेष पूर्ववत्। ७३. भंते! सौधर्म-कल्प में कितने लाख विमानावास प्रज्ञप्त हैं? ___ गौतम! बत्तीस लाख विमानावास प्रज्ञप्त हैं। ७४. भंते! वे किंमय-किससे बने हुए हैं?
गौतम! सर्वरत्नमय और स्वच्छ हैं। शेष पूर्ववत् यावत् अनुत्तरविमान की वक्तव्यता, इतना विशेष है-जहां जितने भवन अथवा विमान ज्ञातव्य है। ७५. भंते! वह ऐसा हो है। भंते! वह ऐसा ही है।
आठवां उद्देशक जीव-आदि-निवृत्ति-पद ७६. भंते! जीव-निर्वृत्ति कितने प्रकार की प्रज्ञप्त है?
गौतम! जीव-निर्वृत्ति पांच प्रकार की प्रज्ञप्त है, जैसे-एकेन्द्रिय-जीव-निर्वृत्ति यावत् पंचेन्द्रिय-जीव-निर्वृत्ति। ७७. भंते! एकेन्द्रिय-जीव-निर्वृत्ति कितने प्रकार की प्रज्ञप्त हैं? गौतम! पांच प्रकार की प्रज्ञप्त हैं, जैसे-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-जीव-निर्वृत्ति यावत् वनस्पतिकायिक-एकेन्द्रिय-जीव-निर्वृत्ति। ७८. भंते! पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-जीव-निर्वृत्ति कितने प्रकार की प्रज्ञप्त है?
गौतम! दो प्रकार की प्रज्ञप्त है, जैसे-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-जीव-निर्वृत्ति, बादर__-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-जीव-निर्वृत्ति।
इस प्रकार इस अभिलाप के अनुसार तैजस-शरीर का वर्तक-बंध यावत्। ७९. भंते! सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत-वैमानिक-देव-पंचेन्द्रिय-जीव-निर्वृत्ति कितने प्रकार की प्रज्ञप्त है? गौतम! दो प्रकार की प्रज्ञप्त है, जैसे–पर्याप्तक-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत-वैमानिक-देव-पंचेन्द्रिय-जीव-निर्वृत्ति, अपर्याप्तक-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत-वैमानिक-देव-पंचेन्द्रिय-जीव-निर्वृत्ति। ८०. भंते! कर्म-निर्वृत्ति कितने प्रकार की प्रज्ञप्त है? गौतम! कर्म-निवृत्ति आठ प्रकार की प्रज्ञप्त है, जैसे-ज्ञानावरणीय-कर्म-निवृत्ति यावत्
आंतरायिक-कर्म-निर्वृत्ति। ८१. भंते! नैरयिकों के कितने प्रकार की कर्म-निवृत्ति प्रज्ञप्त है? गौतम! आठ प्रकार की कर्म-निर्वृत्ति प्रज्ञप्त है, जैसे-ज्ञानावरणीय-कर्म-निर्वृत्ति यावत्
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