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भगवती सूत्र
श. १९ : उ. ५-७ : सू. ६१-७१ यावत् स्तनितकुमार की इसी प्रकार वक्तव्यता। पृथ्वीकायिक यावत् मनुष्य की नैरयिक की भांति वक्तव्यता। वाणमंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक की असुरकुमार की भांति वक्तव्यता। वेदना-पद ६२. भंते! वेदना कितने प्रकार की प्रज्ञप्त है?
गौतम! वेदना दो प्रकार की प्रज्ञप्त है, जैसे-निदा और अनिदा। ६३. भंते! नैरयिक निदा-वेदना का वेदन करते हैं? अनिदा-वेदना का वेदन करते हैं?
गौतम! निदा-वेदना का वेदन भी करते हैं, अनिदा-वेदना का वेदन भी करते हैं। पण्णवणा (पद ३५) की भांति यावत् वैमानिक की वक्तव्यता। ६४. भंते! वह एसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
छठा उद्देशक ६५. भंते ! द्वीप-समुद्र कहां हैं? भंते! द्वीप-समुद्र कितने हैं? भंते! द्वीप-समुद्र किस संस्थान वाले हैं? इस प्रकार जीवाजीवाभिगम का द्वीप-समुद्र-उद्देशक (जीवाजीवाभिगम, ३/२५९-९७५) ज्योतिषमंडित-उद्देशक को छोड़कर यहां वक्तव्य है यावत् परिणाम, जीव-उपपात यावत्
अनंत बार। ६६. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
सातवां उद्देशक असुरकुमार-आदि का भवन-आदि-पद ६७. भंते! असुरकुमार-भवनावास कितने लाख प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! असुरकुमार-भवनावास चौसठ लाख प्रज्ञप्त हैं। ६८. भंते! वे किंमय-किससे बने हुए हैं? गौतम! सर्वरत्नमय, स्वच्छ, सूक्ष्म यावत् रमणीय (भ. २/११८) हैं। वहां बहुत जीव
और पुद्गल उपपन्न होते हैं और विनष्ट होते हैं, च्युत होते हैं और उपपन्न होते हैं। वे भवन द्रव्यार्थिक की दृष्टि से शाश्वत हैं, वर्ण-पर्यव यावत् स्पर्श-पर्यव (भ. १४/२५०) से अशाश्वत हैं। इस प्रकार यावत् स्तनितकुमारावास की वक्तव्यता। ६९. भंते! वानमंतर भौमेय नगरावास कितने लाख प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! वानमंतर भौमेय नगरावास असंख्येय लाख प्रज्ञप्त हैं। ७०. भंते! वे किंमय-किससे बने हुए हैं?
शेष पूर्ववत्। ७१. भंते! ज्योतिष्क-विमानावास कितने लाख प्रज्ञप्त हैं?
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