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भगवती सूत्र
श. १६ : उ. ८,९ : सू. ११६-१२१
गौतम ! परमाण- पुद्गल लोक के पूर्व चरमान्त से पूर्ववत् यावत् ऊर्ध्व चरमान्त में एक समय में जाता है।
क्रिया-पद
११७. भंते! वर्षा हो रही है या नहीं हो रही है - यह जानने के लिए हाथ, पैर, बाहु, जंघा का आकुंचन और प्रसारण करते हुए पुरुष के कितनी क्रिया लगती है ?
गौतम ! वर्षा हो रही है या वर्षा नहीं हो रही है - यह जानने के लिए पुरुष जिस समय हाथ, पैर, बाहु, जंघा का आकुंचन अथवा प्रसारण करता है उस समय वह पुरुष कायिकी, आधिकरणिकी, प्रादोषिकी, पारितापनिकी, प्राणातिपात - क्रिया - इन पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होता है।
अलोक -गति निषेध-पद
११८. भंते! महर्द्धिक यावत् महान् ऐश्वर्यशाली के रूप में प्रख्यात देव लोकान्त में स्थित होकर अलोक में हाथ, पैर, बाहु अथवा जंघा का आकुंचन एवं प्रसारण करने में समर्थ है ? यह अर्थ संगत नहीं है ।
११९. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - महर्द्धिक यावत् महान् ऐश्वर्यशाली के रूप में प्रख्यात देव लोक के अंत में स्थित होकर अलोक में हाथ, पैर, बाहु अथवा जंघा का आकुंचन एवं प्रसारण करने में समर्थ नहीं है ?
गौतम ! पुद्गल जीवों का अनुगमन करते हैं, वे आहार के रूप में उपचित हैं, वे बोंदी के रूप में चित हैं, वे कलेवर के रूप में चित हैं । पुद्गलों का आश्रय लेकर जीवों और अजीवों का गति-पर्याय कहा गया है। अलोक में जीव नहीं हैं, पुद्गल नहीं हैं। गौतम ! इस अपेक्षा
यह कहा जा रहा है-महर्द्धिक यावत् महान् ऐश्वर्यशाली के रूप में प्रख्यात देव लोक के अंत में स्थित होकर अलोक में हाथ, पैर, बाहु अथवा जंघा का आकुंचन एवं प्रसारण करने में समर्थ नहीं है।
१२०. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है ।
नौवां उद्देशक
बलि का सभा-पद
१२१. भंते! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की सभा कहां प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! जंबूद्वीप द्वीप में मेरु पर्वत से उत्तर भाग में तिरछे असंख्य द्वीप - समुद्र चमर की भांति (भ. २/११८) यावत् बयालीस हजार योजन अवगाहन करने पर वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि का रुचकेन्द्र नाम का उत्पात पर्वत प्रज्ञप्त है - उसकी ऊंचाई सतरह सौ इक्कीस योजन प्रज्ञप्त है । प्रमाण तिगिच्छकूट प्रसादावतंसक की भांति वक्तव्य है । बलि का सिंहासन उसके परिवार के सिंहासनों सहित वक्तव्य है । इतना विशेष है - वे रुचकेन्द्र प्रभा वाले हैं, रुचकेन्द्र प्रभा वाले हैं, रुचकेन्द्र प्रभा वाले हैं। शेष पूर्ववत् यावत् बलिचंचा राजधानी में दूसरों पर यावत्
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