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भगवती सूत्र
श. १६ : उ. ५,६ : सू. ७२-८१ ७२. गंगदत्त देव अभी उपपन्न मात्र होने पर पंच प्रकार की पर्याप्ति से पर्याप्त भाव को प्राप्त हो गया (जैसे-आहार-पर्याप्ति यावत् भाषा-मनः-पर्याप्ति) गौतम! इस प्रकार गंगदत्त देव को वह दिव्य देव-ऋद्धि, वह दिव्य देव-द्युति, वह दिव्य देवानुभाव लब्ध, प्राप्त और
अभिसमन्वागत है। ७३. भंते! गंगदत्त देव की स्थिति कितने काल की प्रज्ञप्त है?
गौतम! सतरह सागरोपम की स्थिति प्रज्ञप्त है। ७४. भंते! गंगदत्त देव उस देवलोक से आयु-क्षय, भव-क्षय और स्थिति-क्षय के अनंतर च्यवन कर कहां जाएगा? कहां उपपन्न होगा? गौतम! महाविदेह-वास में सिद्ध होगा यावत् सब दुःखों का अंत करेगा। ७५. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
छठा उद्देशक
स्वप्न-पद ७६. भंते! स्वप्न-दर्शन कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? __ गौतम! स्वप्न-दर्शन पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे यथातथ्य, प्रतान, चिंता-स्वप्न,
तविपरीत, अव्यक्त दर्शन। ७७. भंते! क्या जीव सुप्त अवस्था में स्वप्न देखता है? जागृत अवस्था में स्वप्न देखता है?
सुप्त-जागृत अवस्था में स्वप्न देखता है ? गौतम! सुप्त अवस्था में स्वप्न नहीं देखता, जागृत अवस्था में स्वप्न नहीं देखता, सुप्त-जागृत
अवस्था में स्वप्न देखता है। ७८. भंते! क्या जीव सुप्त हैं? जागृत हैं? सुप्त-जागृत हैं?
गौतम! जीव सुप्त भी हैं, जागृत भी हैं, सुप्त-जागृत भी हैं। ७९. भंते! नैरयिक सुप्त हैं-पृच्छा। गौतम! नैरयिक सुप्त हैं, जागृत नहीं हैं, सुप्त-जागृत नहीं हैं। इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय
की वक्तव्यता। ८०. भंते! पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक क्या सुप्त हैं? पृच्छा। गौतम! सुप्त हैं, जागृत नहीं हैं। सुप्त-जागृत भी हैं। मनुष्य की जीव की भांति वक्तव्यता। वाणमंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक की नैरयिक की भांति वक्तव्यता। ८१. भंते! क्या संवृत स्वप्न देखता है? असंवृत स्वप्न देखता है? संवृतासंवृत स्वप्न देखता
गौतम! संवृत भी स्वप्न देखता है, असंवृत भी स्वप्न देखता है, संवृतासंवृत भी स्वप्न देखता है। संवृत स्वप्न देखता है, वह यथातथ्य देखता है। असंवृत स्वप्न देखता है, वह
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