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भगवती सूत्र
श. १४ : उ. ८ : सू. ११४-१२२
है। वह उस पुरुष को किञ्चित् आबाध अथवा व्याबाध उत्पन्न नहीं करता, छविच्छेद भी नहीं करता, इस कौशल के साथ उपदर्शन करता है ।
गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-अव्याबाध - देव अव्याबाध- देव हैं ।
शक्र का शक्ति-पद
११५. भंते! देवराज देवेन्द्र शक्र हाथ में तलवार ले पुरुष के सिर का छेदन कर उसका कमंडलु में प्रक्षेप करने में समर्थ है ?
हां, समर्थ है।
११६. वह यह कैसे करता है ?
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गौतम ! वह पुरुष के सिर को छिन्न-छिन्न कर उसका कमंडलु में प्रक्षेप करता है । भिन्न-भिन्न कर उसका कमंडलु में प्रक्षेप करता है । कूट-पीस कर उसका कमंडलु में प्रक्षेप करता है। उसे चूर्ण- चूर्ण कर उसका कमंडलु में प्रक्षेप करता है। उसके पश्चात् क्षण भर में ही सिर का प्रतिसंधान कर देता है । उस पुरुष के किञ्चित् आबाध अथवा व्याबाध उत्पन्न नहीं करता, छविच्छेद भी नहीं करता । वह इस कौशल के साथ सिर का कमण्डलु में प्रक्षेप करता है ।
जृंभक-देव-पद
११७. भंते! जृंभक- देव जृंभक - देव हैं ?
हां, हैं।
११८. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-जृंभक-देव जृंभक - देव हैं ?
गौतम ! जृंभक-देव नित्य प्रमुदित, बहुत क्रीडाशील, कंदर्प में रमण करने वाले और कामवासना - प्रिय होते हैं। वे देव जिसे क्रुद्ध होकर देखते हैं, वह पुरुष महान् अयश को प्राप्त होता है। वे देव जिसे तुष्ट होकर देखते हैं, वह पुरुष महान् यश को प्राप्त होता है । गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-जृंभक - देव जृंभक- देव हैं।
११९. भंते! जृंभक देव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम! दस प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे- अन्न- जृंभक, पान - जृंभक, वस्त्र - जृंभक, लयन- जृंभक, शयन - जृंभक, पुष्प - जृंभक, फल- जृंभक, पुष्प-फल- जृंभक, विद्या- जृंभक, अव्यक्त-जृंभक |
१२०. भंते! जृंभक-देव कहां निवास करते हैं ?
गौतम! सब दीर्घ वैताढ्य पर्वतों पर चित्रकूट, विचित्रकूट, यमक पर्वतों पर और कांचन पर्वतों पर इन स्थानों पर जृंभक -देव निवास करते हैं।
१२१. भंते! जृंभक-देवों की स्थिति कितने काल की प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! एक पल्योपम की स्थिति प्रज्ञप्त है ।
१२२. भंते! वह ऐसा ही है । भंते! वह ऐसा ही है यावत् विहरण करने लगे ।
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