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भगवती सूत्र
श. १४ : उ. २,३ : सू. २३-३० २३. भंते! क्या असुरकुमार-देव वर्षा करते हैं?
हां, करते हैं। २४. भंते! असुरकुमार-देव किस कारण से वर्षा करते हैं?
गौतम! जो ये अरहंत भगवान हैं, इनके जन्म-महिमा में, निष्क्रमण-महिमा में, केवलज्ञान-उत्पत्ति-महिमा में, परिनिर्वाण-महिमा में। गौतम! इस प्रकार ये असुरकुमार-देव वर्षा करते हैं। इस प्रकार नागकुमार भी, इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार। इसी प्रकार वाणमंतर,
ज्योतिष्क, वैमानिक की वक्तव्यता। तमस्काय-करण-पद २५. भंते ! जब देवराज देवेन्द्र ईशान तमस्काय (सघन अंधकार) करना चाहता है, तब वह कैसे
करता है? गौतम! देवराज देवेन्द्र ईशान आभ्यंतर-परिषद् के देवों को बुलाता है। वे आभ्यंतर-परिषद् के देव देवराज देवेन्द्र ईशान के निर्देश पर मध्यम-परिषद् के देवों को बुलाते हैं। मध्यम-परिषद् के देव आभ्यंतर-परिषद् के देवों के निर्देश पर बाह्य-परिषद् के देवों को बुलाते हैं। बाह्य-परिषद् के देव मध्यम-परिषद् के निर्देश पर बाह्यबाह्यक-देवों को बुलाते हैं। वे बाह्यबाह्यक-देव बाह्य-परिषद् के देवों के निर्देश पर आभियोगिक-देवों को बुलाते हैं। वे आभियोगिक-देव बाह्यबाह्यक-परिषद् के निर्देश पर तमस्कायिक-देवों को बुलाते हैं। वे तमस्कायिक-देव आभियोगिक -देवों के निर्देश पर तमस्काय करते हैं। गौतम! इस प्रकार देवराज देवेन्द्र ईशान तमस्काय करता है। २६. भंते! क्या असुरकुमार-देव भी तमस्काय करते हैं?
हां, करते हैं। २७. भंते! असुरकुमार देव किस कारण से तमस्काय करते हैं?
गौतम! क्रीड़ा-रति के लिए, प्रत्यनीक-शत्रु को विमूढ बनाने के लिए, गोपनीय द्रव्य के संरक्षण के लिए, अपने शरीर को प्रच्छन्न करने के लिए। गौतम! इस प्रकार असुरकुमार-देव तमस्काय करते हैं। इसी प्रकार यावत् वैमानिक की वक्तव्यता। २८. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। यावत् विहरण करने लगे।
तीसरा उद्देशक विनय-विधि-पद २९. भंते! महाकाय-महाशरीर-देव भावितात्मा अनगार के बीचोंबीच होकर जाता है? ___ गौतम! कोई जाता है, कोई नहीं जाता। ३०. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है कोई जाता है, कोई नहीं जाता? गौतम! दो प्रकार के देव प्रज्ञप्त हैं, जैसे-मायी-मिथ्यादृष्टि-उपपन्नक, अमायी-सम्यग्दृष्टि
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