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श. १४ : उ. २ : सू. १६-२२
भगवती सूत्र की अपेक्षा अतिशय क्लेशपूर्वक मुक्ति होती है। १७. भंते! नैरयिकों के कितने प्रकार का उन्माद प्रज्ञप्त है?
गौतम! दो प्रकार का उन्माद प्रज्ञप्त है, जैसे यक्षावेश और मोहनीय-कर्म के उदय से होने वाला। १८. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-नैरयिकों के दो प्रकार का उन्माद प्रज्ञप्त है,
जैसे—यक्षावेश और मोहनीय-कर्म के उदय से होने वाला? गौतम! देव अशुभ पुद्गलों का प्रक्षेप करते हैं, उन अशुभ पुद्गलों के प्रक्षेप से नैरयिक यक्षावेश के उन्माद को प्राप्त होते हैं। मोहनीय-कर्म के उदय से नैरयिक मोहनीय के उन्माद को प्राप्त होते हैं। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-नैरयिकों के दो प्रकार का उन्माद प्रज्ञप्त है,
जैसे–यक्षावेश और मोहनीय-कर्म के उदय से होने वाला। १९. भंते! असुरकुमारों के कितने प्रकार का उन्माद प्रज्ञप्त है?
गौतम ! दो प्रकार का उन्माद प्रज्ञप्त है, जैसे यक्षावेश और मोहनीय-कर्म के उदय से होने वाला। २०. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-असुरकुमारों के दो प्रकार का उन्माद प्रज्ञप्त है, जैसे यक्षावेश और मोहनीय कर्म के उदय से होने वाला? गौतम ! महर्द्धिकतर देव अशुभ पुद्गलों का प्रक्षेप करते हैं, उन अशुभ पुद्गलों के प्रक्षेप से असुरकुमार यक्षावेश के उन्माद को प्राप्त होते हैं। मोहनीय-कर्म के उदय से वे मोहनीय उन्माद को प्राप्त होते हैं। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत् कर्म के उदय से होने वाला। पृथ्वीकायिक यावत् मनुष्य-इनमें उन्माद नैरयिक की भांति वक्तव्य है। वाणमंतर, ज्योतिष्क, वैमानिक में उन्माद असुरकुमारों की भांति वक्तव्य है। वृष्टिकाय-करण-पद २१. भंते! वर्षा-काल में बरसने वाला पर्जन्य क्या वर्षा करता है?
हां, करता है। २२. भंते! जब देवराज देवेन्द्र शक्र वर्षा करना चाहता है तब वह कैसे करता है?
गौतम! तब देवराज देवेन्द्र शक्र आभ्यंतर-परिषद् के देवों को आमंत्रित करता है। आभ्यंतर-परिषद् के देव शक्र का निर्देश प्राप्त कर मध्यम परिषद् के देवों को बुलाते हैं। मध्यम-परिषद् के देव आभ्यंतर-परिषद् का निर्देश प्राप्त कर बाह्य परिषद् के देवों को बुलाते हैं। बाह्य-परिषद् के देव मध्यम-परिषद् का निर्देश प्राप्त कर बाह्यबाह्यक-परिषद् के देवों को बुलाते हैं। बाह्यबाह्यक-परिषद् के देव बाह्य परिषद् के निर्देश पर आभियोगिक-देवों को बुलाते हैं। आभियोगिक-परिषद् के देव बाह्यबाह्यक-परिषद् के निर्देश पर वृष्टिकायिक-देवों को बुलाते हैं। वे वृष्टिकायिक-देव आभियोगिक-देवों के निर्देश पर वर्षा करते हैं। गौतम! इस प्रकार देवराज देवेन्द्र शक्र वर्षा करता है।
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