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भगवती सूत्र
श. १ : उ. २ : सू. ८९-९७ ८९. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है सब मनुष्य समान कर्म वाले नहीं है?
गौतम! मनुष्य दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-पूर्व उपपन्न और पश्चाद् उपपन्न। इनमें जो पूर्व उपपन्न हैं, वे अल्पतर कर्म वाले हैं। जो पश्चाद् उपपन्न हैं, वे बहुतर कर्म वाले हैं। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-सब मनुष्य समान कर्म वाले नहीं हैं। ९०. भन्ते! क्या सब मनुष्य समान वर्ण वाले हैं?
गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। ९१. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-सब मनुष्य समान वर्ण वाले नहीं हैं ?
गौतम! मनुष्य दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे पूर्व उपपन्न और पश्चाद् उपपन्न। इनमें जो पूर्व उपपन्न हैं, वे विशुद्धतर वर्ण वाले हैं। जो पश्चाद् उपपन्न हैं, वे अविशुद्धतर वर्ण वाले हैं। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-सब मनुष्य समान वर्ण वाले नहीं हैं। ९२. भन्ते! क्या सब मनुष्य समान लेश्या वाले हैं?
गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। ९३. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-सब मनुष्य समान लेश्या वाले नहीं हैं?
गौतम! मनुष्य दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-पूर्व उपपन्न और पश्चाद् उपपन्न। इनमें जो पूर्व उपपन्न हैं, वे विशुद्धतर लेश्या वाले हैं। जो पश्चाद् उपपन्न हैं, वे अविशुद्धतर लेश्या वाले हैं। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-सब मनुष्य समान लेश्या वाले नहीं है। ९४. भन्ते! क्या सब मनुष्य समान वेदना वाले हैं?
गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। ९५. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-सब मनुष्य समान वेदना वाले नहीं हैं ?
गौतम ! मनुष्य दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-संज्ञिभूत और असंज्ञिभूत । इनमें जो संज्ञिभूत हैं, वे महा वेदना वाले हैं। जो असंज्ञिभूत हैं, वे अल्पतर वेदना वाले हैं। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-सब मनुष्य समान वेदना वाले नहीं हैं। ९६. भन्ते! क्या सब मनुष्य समान क्रिया वाले हैं?
गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। ९७. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है सब मनुष्य समान क्रिया वाले नहीं हैं?
गौतम! मनुष्य तीन प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे–सम्यग्-दृष्टि, मिथ्या-दृष्टि, सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि । इनमें जो सम्यग्दृष्टि हैं, वे तीन प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-संयत, असंयत और संयतासंयत । जो संयत हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-सराग-संयत और वीतराग-संयत। जो वीतराग-संयत हैं, वे अक्रिय हैं उनके ये पांचों क्रियाएं नहीं होती। जो सराग-संयत हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-प्रमत्त-संयत और अप्रमत्त-संयत।
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