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श. १ : उ. २ : सू. ८१-८८
भगवती सूत्र ८१. पृथ्वीकायिक-जीवों क समान आयु और एक साथ उपपन्न होने का प्रकरण नैरयिक-जीवों
की भांति वक्तव्य है। ८२. अपकायिक-जीवों से लेकर चतुरिन्द्रिय जीवों तक पूरा प्रकरण पृथ्वीकायिक-जीवों की
भांति वक्तव्य है। ८३. पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव नैरयिक-जीवों की भांति वक्तव्य हैं, केवल क्रिया का विषय
भिन्न है। ८४. भन्ते! क्या सब पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव समान क्रिया वाले हैं?
गौतम! यह अर्थ संगत नहीं हैं। ८५. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-सब पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव समान क्रिया वाले नहीं हैं? गौतम! पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव तीन प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे सम्यग्-दृष्टि, मिथ्या-दृष्टि
और सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि। इनमें जो सम्यग्-दृष्टि हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-असंयत और संयतासंयत। इनमें जो संयतासंयत हैं, उनके तीन क्रियाएं होती हैं, जैसे-आरम्भिकी, पारिग्राहिकी, मायाप्रत्यया। असंयत जीवों के चार, मिथ्या-दृष्टि और सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि जीवों के पांच क्रियाएं होती
मनुष्यों आदि का समान आहार, समान शरीर आदि-पद ८६. भन्ते! क्या सब मनुष्य समान आहार, समान शरीर और समान उच्छ्वास-निःश्वास वाले
गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। ८७. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-सब मनुष्य समान आहार, समान शरीर और
समान उच्छ्वास-निःश्वास वाले नहीं हैं? गौतम! मनुष्य दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे महाशरीरी और अल्पशरीरी। इनमें जो महाशरीरी हैं, वे बहुतर पुद्गलों का आहार करते हैं, बहुतर पुद्गलों का परिणमन करते हैं, बहुतर पुद्गलों का उच्छ्वास करते हैं और बहुतर पुद्गलों का निःश्वास करते हैं। वे कदाचित् आहार करते हैं, कदाचित् परिणमन करते हैं, कदाचित् उच्छ्वास करते हैं और कदाचित् निःश्वास करते हैं। इनमें जो अल्पशरीरी हैं, वे अल्पतर पुद्गलों का आहार करते हैं, अल्पतर पुद्गलों का परिणमन करते हैं, अल्पतर पुद्गलों का उच्छ्वास करते हैं और अल्पतर पुद्गलों का निःश्वास करते हैं। वे बार-बार आहार करते हैं, बार-बार परिणमन करते हैं, बार-बार उच्छ्वास करते हैं और बार-बार निःश्वास करते हैं। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-सब मनुष्य
समान आहार, समान शरीर और समान उच्छ्वास-निःश्वास वाले नहीं हैं। ८८. भन्ते! क्या सब मनुष्य समान कर्म वाले हैं? गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है।