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भगवती सूत्र
श. ५ : उ. ७ : सू. १५४-१५९ हां, अवगाहन कर सकता है। भन्ते! क्या वह (परमाणु-पुद्गल) वहां छिन्न अथवा भिन्न होता है? गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। परमाणु-पुद्गल पर शस्त्र नहीं चलता। १५५. इसी प्रकार यावत् असंख्येयप्रदेशिक स्कन्ध वक्तव्य है। १५६. भन्ते! क्या अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध तलवार की धारा अथवा छुरे की धारा पर अवगाहन कर सकता है? हां, अवगाहन कर सकता है। भन्ते! क्या वह वहां छिन्न अथवा भिन्न होता है? गौतम! कुछ स्कन्ध छिन्न-भिन्न होते हैं, कुछ स्कन्ध छिन्न अथवा भिन्न नहीं होते। १५७. भन्ते क्या परमाणु-पुद्गल अग्निकाय के बीचोबीच से जा सकता है?
हां, वह जा सकता है। भन्ते! क्या वह वहां पर जलता है? गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है, परमाणु-पुद्गल पर शस्त्र नहीं चलता। भन्ते! क्या वह पुष्कर-सवंतर्क महामेघ के बीचोबीच से जा सकता है? हां, वह जा सकता है। भन्ते! क्या वह वहां पर आर्द्र होता है? गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है, परमाणु-पुद्गल पर शस्त्र नहीं चलता। भन्ते! क्या वह गंगा-महानदी के प्रतिस्रोत में शीघ्र ही आ सकता है? हां, वह शीघ्र ही आ सकता है। भन्ते! क्या वह वहां विनिघात को प्राप्त होता है? गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है, परमाणु-पुद्गल पर शस्त्र नहीं चलता। भन्ते! क्या वह जल के आवर्त या जल की बूंद पर अवगाहन कर सकता है? हां, वह अवगाहन कर सकता है। भन्ते! क्या वह वहां पर पर पीड़ित होता है? गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है, परमाणु-पुद्गल पर शस्त्र नहीं चलता। १५८. इसी प्रकार यावत् असंख्येयप्रदेशिक स्कन्ध पर शस्त्र नहीं चलता। १५९. भन्ते! क्या अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध अग्निकाय के बीचोबीच जा सकता है?
हां, वह जा सकता है। भन्ते! क्या वह वहां पर जलता है? गौतम! कुछ एक स्कन्ध जलते हैं, कुछ एक स्कन्ध नहीं जलते हैं।
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