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श. ५ : उ. ६,७ : सू. १४८-१५४
भगवती सूत्र अभ्याख्यानी के कर्मबन्ध-पद १४८. भन्ते! जो पुरुष मिथ्या असद्भूत अभ्याख्यान (दोषारोपण) के द्वारा दूसरे को आरोपित करता है, उसके किस प्रकार के कर्मों का बन्ध होता है? गौतम! जो पुरुष मिथ्या, असद्भूत अभ्याख्यान के द्वारा दूसरे को आरोपित करता है, उसके उसी प्रकार के कर्मों का बन्ध होता है। वहां जहां उत्पन्न होता है, वहीं उन कर्मों का प्रतिसंवेदन करता है, पश्चाद् उनका वेदन-निर्जरण करता है। १४९. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
सातवां उद्देशक परमाणु-स्कन्धों का एजनादि-पद १५०. भन्ते! क्या परमाणु-पुद्गल एजन, व्येजन, चलन, स्पन्दन, प्रकम्पन, क्षोभ और उदीरणा करता है, नए-नए भाव में परिणत होता है?
गौतम! कदाचित् वह एजन, व्येजन करता है यावत् नए-नए भाव में परिणत होता है, कदाचित् वह एजन नहीं करता यावत् नए-नए भाव में परिणत नहीं होता। १५१. भन्ते! क्या द्विप्रदेशिक स्कन्ध एजन करता है यावत् नए-नए भाव में परिणत होता है?
गौतम! कदाचित् वह एजन करता है यावत् नए-नए भाव में परिणत होता है । कदाचित् वह एजन नहीं करता यावत् नए-नए भाव में परिणत नहीं होता। कदाचित् उसका एक देश ऐजन करता है, एक देश एजन नहीं करता। १५२. भन्ते! क्या त्रिप्रदेशिक स्कन्ध एजन करता है?
गौतम! कदाचित् वह एजन करता है, कदाचित् एजन नहीं करता। कदाचित् उसका एक देश एजन करता है, एक देश एजन नहीं करता। कदाचित् उसका एक देश एजन करता है, अनेक देश एजन नहीं करते। कदाचित् उसके अनेक देश एजन करते हैं, एक देश एजन नहीं करता। १५३. भन्ते! क्या चतुःप्रदेशिक स्कन्ध एजन करता है?
गौतम! कदाचित् वह एजन करता है, कदाचित् एजन नहीं करता। कदाचित् उसका एक देश एजन करता है, एक देश एजन नहीं करता। कदाचित् उसका एक देश एजन करता है अनेक देश एजन नहीं करते। कदाचित् उसके अनेक देश एजन करते हैं, एक देश एजन नहीं करता। कदाचित् उसके अनेक देश एजन करते हैं, अनेक देश एजन नहीं करते।
जैसे–चतुः-प्रदेशी स्कन्ध की प्ररूपणा है, वैसी ही प्ररूपणा पंच-प्रदेशी स्कन्ध की करणीय है। यावत् अनन्त-प्रदेशी स्कन्ध की प्ररूपणा भी वैसी ही है। परमाणु-स्कन्धों का छेदन आदि-पद १५४. भन्ते! क्या परमाणु-पुद्गल तलवार की धारा अथवा छुरे की धारा पर अवगाहन कर सकता है?
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