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भगवती सूत्र
श. १ : उ. ९ : सू. ३९०-४०३ गौतम! प्राणातिपात यावत् मिथ्या-दर्शन-शल्य के द्वारा जीव संसार में अनुपरिवर्तन करते हैं। ३९१. भन्ते! जीव संसार का व्यतिक्रमण कैसे करते हैं?
गौतम! प्राणातिपात यावत् मिथ्या-दर्शन-शल्य के विरमण से जीव संसार का व्यतिक्रमण करते हैं। इनमें चार प्रशस्त और चार अप्रशस्त हैं। ३९२. भन्ते! सातवां अवकाशान्तर क्या गुरु है? लघु है? गुरुलघु है? अगुरुलघु है?
गौतम! वह न गुरु है, न लघु है, न गुरुलघु है, अगुरुलघु है? ३९३. भन्ते! सातवां तनुवात क्या गुरु है? लघु है? गुरुलघु है? अगुरुलघु है?
गौतम! वह न गुरु है, न लघु है, न अगुरुलघु है, गुरुलघु है? ३९४. इसी प्रकार सातवां घनवात, सातवां घनोदधि और सातवीं पृथ्वी ज्ञातव्य हैं। ३९५. सभी अवकाशान्तर सातवें अवकाशान्तर की भांति ज्ञातव्य हैं। ३९६. जैसे तनुवात का निरूपण हुआ है, उसी प्रकार-अवकाश, घनवात, घनोदधि, पृथ्वी,
द्वीप, सागर और वर्ष निरूपणीय हैं। ३९७. भन्ते! नैरयिक क्या गुरु हैं? लघु है? गुरुलघु हैं? अगुरुलघु हैं?
गौतम! वे न गुरु हैं, न लघु हैं , गुरुलघु भी हैं और अगुरुलघु भी हैं ? ३९८. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-नैरयिक न गुरु हैं, न लघु हैं, गुरुलघु भी हैं, अगुरुलघु भी हैं? गौतम! वैक्रिय- और तैजस-शरीर की अपेक्षा से वे न गुरु हैं, न लघु हैं, न अगुरुलघु हैं, गुरुलघु हैं । जीव और कार्मण-शरीर की अपेक्षा से वे न गुरु हैं, न लघु हैं, न गुरुलघु हैं, अगुरुलघु हैं। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-नैरयिक न गुरु हैं, न लघु हैं, गुरुलघु भी हैं,
अगुरुलघु भी हैं। ३९९. इसी प्रकार वैमानिक-देवों तक की वक्तव्यता, केवल शरीर-विषयक नानात्व ज्ञातव्य है। ४००. भन्ते! धर्मास्तिकाय क्या गुरु है? लघु है? गुरुलघु है? अगुरुलघु है?
गौतम! वह न गुरु है, न लघु है, न गुरुलघु है, अगुरुलघु है। ४०१. भन्ते! अधर्मास्तिकाय क्या गुरु है? लघु है? गुरुलघु है? अगुरुलघु है?
गौतम! वह न गुरु है, न लघु है , न गुरुलघु है, अगुरुलघु है। ४०२. भन्ते! आकाशास्तिकाय क्या गुरु है? लघु है? गुरुलघु है? अगुरुलघु है?
गौतम! वह न गुरु है, न लघु है, न गुरुलघु है, अगुरुलघु है। ४०३. भन्ते! जीवास्तिकाय क्या गुरु है? लघु है? गुरुलघु है? अगुरुलघु है?