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श. १ : उ. ९ : सू. ४०३-४१८
भगवती सूत्र गौतम! वह न गुरु है, न लघु है, न गुरुलघु है, अगुरुलघु है ।। ४०४. भन्ते! पुद्गलास्तिकाय क्या गुरु है? लघु है? गुरुलघु है, अगुरुलघु है?
गौतम! वह न गुरु है, न लघु है , गुरुलघु भी है, अगुरुलघु भी है । ४०५. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-पुद्गलास्तिकाय न गुरु है, न लघु है, गुरुलघु भी है, अगुरुलघु भी है ? गौतम! गुरुलघु द्रव्यों की अपेक्षा से वह न गुरु है, न लघु है, न अगुरुलघु है, गुरुलघु है । अगुरुलघु द्रव्यों की अपेक्षा से वह न गुरु है, न लघु है, न गुरुलघु है, अगुरुलघु है । ४०६. भन्ते! समय क्या गुरु हैं? लघु हैं ? गुरुलघु है? अगुरुलघु हैं?
गौतम! वे न गुरु हैं, न लघु हैं, न गुरुलघु हैं, अगुरुलघु हैं। ४०७. भन्ते! कर्म क्या गुरु हैं? लघु हैं ? गुरुलघु हैं? अगुरुलघु हैं?
गौतम! वे न गुरु हैं, न लघु है , न गुरुलघु है, अगुरुलघु है । ४०८. भन्ते! कृष्ण-लेश्या क्या गुरु है? लघु है ? गुरुलघु है? अगुरुलघु है? ... गौतम! वह न गुरु है न लघु है, गुरुलघु भी है, अगुरुलघु भी है। ४०९. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-कृष्ण-लेश्या न गुरु है? न लघु है? गुरुलघु
भी है? अगुरुलघु भी है ? गौतम! द्रव्यलेश्या की अपेक्षा से वह गुरुलघु भी है, भाव-लेश्या की अपेक्षा से
अगुरुलघु है। ४१०. शुक्ल लेश्या तक इसी प्रकार ज्ञातव्य है। ४११. दृष्टि, दर्शन, ज्ञान, अज्ञान और संज्ञा अगुरुलघु हैं। ४१२. प्रथम चार शरीर गुरुलघु और कार्मण शरीर अगुरुलघु हैं। ४१३. मन-योग और वचन-योग अगुरुलघु हैं, काय-योग गुरुलघु है। ४१४. साकार-उपयोग और अनाकार-उपयोग अगुरुलघु हैं। ४१५. सब द्रव्य, सब प्रदेश और सब पर्याय पुद्गलास्तिकाय की भांति वक्तव्य हैं। ४१६. अतीत-काल, अनागत-काल और सर्व-काल अगुरुलघु हैं। प्रशस्त-पद ४१७. भन्ते! क्या श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए लाघव, अल्पेच्छा, अमूर्छा, अगृद्धि, अप्रतिबद्धता प्रशस्त हैं? हां, गौतम! श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए लाघव, अल्पेच्छा, अमूर्छा, अगृद्धि, अप्रतिबद्धता प्रशस्त हैं। ४१८. भन्ते! क्या श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए अक्रोध, अमान, अमाया और अलोभ का भाव प्रशस्त है?