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श. १ : उ. ८,९ : सू. ३८०-३९०
भगवती सूत्र गौतम! मनुष्य सवीय भी हैं और अवीर्य भी हैं। ३८१. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-मनुष्य सवीर्य भी हैं और अवीर्य भी हैं?
गौतम! मनुष्य दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं-शैलेशी-प्रतिपन्न और अशैलेशी-प्रतिपन्न। इनमें जो शैलेशी-प्रतिपन्न हैं, वे लब्धि-वीर्य से सवीर्य और करण-वीर्य से अवीर्य हैं। इनमें जो अशैलेशी-प्रतिपन्न हैं, वे लब्धि-वीर्य से सवीर्य और करण-वीर्य से सवीर्य भी हैं और अवीर्य भी हैं। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-मनुष्य सवीर्य भी हैं और अवीर्य
भी हैं। ३८२. वानमन्तर-, ज्योतिष्क- और वैमानिक-देव नैरयिक-जीवों की भांति ज्ञातव्य हैं। ३८३. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है-इस प्रकार भगवान् गौतम यावत् संयम और तप से अपने आप को भावित करते हुए विहरण कर रहे हैं।
नौवां उद्देशक गुरु-लघु-पद ३८४. भन्ते! जीव गुरुता को कैसे प्राप्त होते हैं? गौतम! प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेय, दोष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवाद, अरति-रति, माया-मृषा और मिथ्या-दर्शन-शल्य के द्वारा जीव गुरुता को प्राप्त होते हैं। ३८५. भन्ते! जीव लघुता को कैसे प्राप्त होते हैं? गौतम! प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेय, दोष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवाद, अरति-रति, माया-मृषा और मिथ्या-दर्शन-शल्य-इनके विरमण से जीव लघुता को प्राप्त होते हैं। ३८६. भन्ते! जीव संसार को अपरिमित कैसे करते हैं? गौतम! प्राणातिपात यावत् मिथ्या-दर्शन-शल्य के द्वारा जीव संसार को अपरिमित करते हैं। ३८७. भन्ते! जीव संसार को परिमित कैसे करते हैं? गौतम! प्राणातिपात यावत् मिथ्या-दर्शन-शल्य के विरमण से जीव संसार को परिमित करते
३८८. भन्ते! जीव संसार को दीर्घकालिक कैसे करते हैं? गौतम! प्राणातिपात यावत् मिथ्या-दर्शन-शल्य के द्वारा जीव संसार को दीर्घकालिक करते
हैं।
३८९. भन्ते! जीव संसार को अल्पकालिक कैसे करते हैं? गौतम! प्राणातिपात यावत् मिथ्या-दर्शन-शल्य के विरमण से जीव संसार को अल्पकालिक करते हैं। ३९०. भन्ते! जीव संसार में अनुपरिवर्तन कैसे करते हैं?
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