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भगवती सूत्र
प्रादोषिकी और पारितापनिकी - इन चार क्रियाओं से स्पृष्ट होता है।
जो भव्य कूटपाश को बांधता भी है, मृग को बांधता है और उसे मारता भी है, उस समय वह पुरुष कायिकी, आधिकरणिकी, प्रादोषिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपात - क्रिया - इन पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होता है । गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - वह स्यात् तीन, स्यात् चार और स्यात् पांच क्रियाओं से युक्त होता है ।
श. १ : उ ८ : सू. ३६५-३६९
३६६. भन्ते ! कोई व्यक्ति कच्छ यावत् दुर्गम वन में घास का ढेर लगा उसमें अग्नि का प्रक्षेप करता है । उस समय वह पुरुष कितनी क्रियाओं से युक्त होता है ?
गौतम! स्यात् तीन, स्यात् चार और स्यात् पांच क्रियाओं से युक्त होता है ।
३६७. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-वह पुरुष स्यात् तीन, स्यात् चार और स्यात् पांच क्रियाओं से युक्त होता है ?
गौतम ! जो भव्य घास का ढेर लगाता है, पर न तो उसमें अग्नि का प्रक्षेप करता है और न उसे जलाता है, उस समय वह पुरुष कायिकी, आधिकरणिकी और प्रादोषिकी इन तीन क्रियाओं से स्पृष्ट होता है।
जो भव्य घास का ढेर भी लगाता है, उसमें अग्नि का प्रक्षेप भी करता है, पर उसे जलाता नहीं है, उस समय वह पुरुष कायिकी, आधिकरणिकी, प्रादोषिकी और पारितापनिकी - इन चार क्रियाओं से स्पृष्ट होता है ।
जो भव्य घास का ढेर भी लगाता है, उसमें अग्नि का प्रक्षेप भी करता है और उसे जलाता भी है, उस समय वह पुरुष कायिकी, आधिकरणिकी, प्रादोषिकी, पारितापनिकी और प्राणतिपात- क्रिया - इन पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होता है ।
गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है वह स्यात् तीन, स्यात् चार और स्यात् पांच क्रियाओं से युक्त होता है ।
३६८. भन्ते ! कोई मृगाजीवी, मृग-वध के संकल्प वाला, मृग-वध में एकाग्र चित्त पुरुष मृगके वध -वध के लिए कच्छ यावत् दुर्गम वन में जाकर 'ये मृग हैं' - यह सोच किसी एक मृग के लिए बाण फेंकता है । भन्ते ! उससे वह पुरुष कितनी क्रियाओं से युक्त होता है ? गौतम ! वह स्यात् तीन, स्यात् चार और स्यात् पांच क्रियाओं से युक्त होता है । ३६९. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - वह पुरुष स्यात् तीन, स्यात् चार और स्यात् पांच क्रियाओं से युक्त होता है ?
गौतम ! जो भव्य बाण फेंकता है, पर न तो मृग को आहत करता है और न उसका प्राण हरण करता है, उस समय वह पुरुष कायिकी, आधिकरणिकी और प्रादोषिकी इन तीन क्रियाओं से स्पृष्ट होता है ।
जो भव्य बाण भी फेंकता हे, मृग को आहत भी करता है, पर उसका प्राण हरण नहीं करता, उस समय वह पुरुष कायिकी, आधिकरणिकी, प्रादोषिकी और पारितापनिकी - इन चार क्रियाओं से स्पृष्ट होता है।
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