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भगवती सूत्र
श. १ : उ. ८ : सू. ३६९-३७३
जो भव्य बाण भी फेंकता है, मृग को आहत भी करता है और उसका प्राण हरण भी करता है, उस समय वह पुरुष कायिकी, आधिकरणिकी, प्रादोषिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपात - क्रिया-इन पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होता है । गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - वह स्यात् तीन, स्यात् चार और स्यात् पांच क्रियाओं से युक्त होता है ।
३७०. भन्ते! कोई मृगाजीवी, मृग-वध के संकल्प वाला, मृग-वध में एकाग्र चित्त पुरुष मृगवध के लिए कच्छ यावत् दुर्गम वन में जाकर 'ये मृग हैं' - यह सोच किसी एक मृग के वध के लिए बाण को आयत कर्णायत-कान तक खींचकर खड़ा हो, उसी समय कोई अन्य व्यक्ति पीछे से आकर अपने हाथ से तलवार द्वारा उसका सिर काट ले और वह बाण पहले से ही खिंचा हुआ होने के कारण उस मृग को वेध डाले, तो भन्ते ! वह व्यक्ति क्या मृग - वैर से स्पृष्ट होता है अथवा पुरुष- वैर से स्पृष्ट होता है ?
गौतम! जो मृग को मारता है, वह मृग-वैर से स्पृष्ट होता है और जो पुरुष को मारता है, वह पुरुष - वैर से स्पृष्ट होता है ।
३७१. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है- जो मृग को मारता है, वह मृग - वैर से स्पृष्ट होता है ? जो पुरुष को मारता है, वह पुरुष- वैर से स्पृष्ट होता है ?
गौतम! क्रियमाण को कृत, संधीयमान (धनुष की प्रत्यञ्चा पर बाण चढ़ाया जा रहा है) को संधित, निर्वृत्त्यमान (प्रत्यञ्चा खींचने से धनुष को वर्तुल किया जा रहा है) को निर्वृत्तित और निसृज्यमान को निसृष्ट कहा जा सकता है ?
हां, भगवन् । क्रियमाण को कृत, संधीयमान को संधित, निर्वृत्त्यमान को निर्वृत्तित और निसृज्यमान को निसृष्ट कहा जा सकता है।
गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है- जो मृग को मारता है, वह मृग-वैर से स्पृष्ट होता है और जो पुरुष को मारता है, वह पुरुष वैर से स्पृष्ट होता है ।
वह मृग छह मास के भीतर मरता है, तो कायिकी, आधिकरणिकी, प्रादोषिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपात-क्रिया- इन पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होता है । यदि वह छह मास के बाद मरता है तो कायिकी, आधिकरणिकी, प्रादोषिकी और पारितानिकी की इन चार क्रियाओं से स्पृष्ट होता है।
३७२. भन्ते ! कोई पुरुष किसी पुरुष को शक्ति नामक प्रहरण से मारे या अपने हाथ से तलवार द्वारा उसका सिर काटे, तो उससे वह पुरुष कितनी क्रियाओं से युक्त होता है ?
गौतम! जब वह पुरुष उस पुरुष को शक्ति - बरछा से मारता है या अपने हाथ से तलवार द्वारा उसका सिर काट देता है, उस समय वह पुरुष कायिकी, आधिकरणिकी, प्रादोषिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपात - क्रिया - इन पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होता है ।
वह पुरुष आसन्न-वधक होने तथा पर-प्राणों के प्रति निरपेक्ष वृत्तिके कारण पुरुष - वैर से स्पृष्ट होता है।
जय-पराजय-पद
३७३. भन्ते ! समान त्वचा वाले, समान वय वाले, समान युद्धोपयोगी साधन सामग्री वाले
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