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भगवती सूत्र
श. १ : उ ८ : सू. ३६२-३६५
बालपण्डित का आयुष्य-पद
३६२. भन्ते ! बालपण्डित मनुष्य क्या नरक का आयुष्य बांधता है ? तिर्यञ्च का आयुष्य बांधता है ? मनुष्य का आयुष्य बांधता है ? देव का आयुष्य बांधता है ? वह नरक का आयुष्य बांधकर नैरयिकों में उपपन्न होता है ? तिर्यञ्च का आयुष्य बांधकर तिर्यञ्चों में उपपन्न होता है ? मनुष्य का आयुष्य बांधकर मनुष्यों में उपपन्न होता है ? देव का आयुष्य बांधकर देवों में उपपन्न होता है ?
गौतम ! बालपण्डित मनुष्य न नरक का आयुष्य बांधता है, न तिर्यञ्च का आयुष्य बांधता है, न मनुष्य का आयुष्य बांधता हे, वह केवल देव का आयुष्य बांधता है। वह न नरक का आयुष्य बांधकर नैरयिकों में उपपन्न होता है, न तिर्यञ्च का आयुष्य बांधकर तिर्यञ्चों में उपपन्न होता है, न मनुष्य का आयुष्य बांधकर मनुष्यों में उपपन्न होता है, वह केवल देव का आयुष्य बांधकर देवों में उपपन्न होता है।
३६३. यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है- बाल - पण्डित मनुष्य यावत् देव का आयुष्य बांधकर देवों में उपपन्न होता है ?
गौतम ! बाल - पण्डित मनुष्य तथारूप श्रमण अथवा माहन के पास एक भी आर्य धार्मिक सुवचन सुन कर, अवधारण कर आंशिक रूप से उपरत होता है और आंशिक रूप से उपरत नहीं होता। आंशिक रूप से प्रत्याख्यान करता है और आंशिक रूप से प्रत्याख्यान नहीं
करता ।
वह उस आंशिक उपरम और आंशिक प्रत्याख्यान से नरक का आयुष्य नहीं बांधता यावत् देव का आयुष्य बांधकर देवों में उपपन्न होता है । इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-बाल- पण्डित मनुष्य यावत् देव का आयुष्य बांधकर देवों में उपपन्न होता है ।
क्रिया-पद
३६४. भन्ते! कोई मृगाजीवी, मृग-वध के संकल्प वाला, मृग-वध में एकाग्र चित पुरुष मृग- वध के लिए कच्छ ( नदी तटीय प्रदेश), द्रह, उदग (जलाशय), 'दविय' (घास के जंगल अथवा गोचर भूमि ), वलय ( वृत्ताकार नदी - प्रदेश), 'नूम' (प्रच्छन्न प्रदेश), अरण्य, दुर्गम अरण्य, पर्वत, दुर्गम पर्वत, वन, दुर्गम वन में जाकर 'ये मृग हैं' - यह सोच किसी एक मृग के वधके लिए कूटपाश बांधता है । भन्ते ! उससे वह पुरुष कितनी क्रियाओं से युक्त होता है ?
गौतम ! वह स्यात् (कदाचित् ) तीन, स्यात् चार और स्यात् पांच क्रियाओं से युक्त होता है । ३६५. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - यह वह पुरुष स्यात् तीन, स्यात् चार और स्यात् पांच क्रियाओं से युक्त होता है ?
गौतम ! जो भव्य (व्यक्ति) कूटपाश की रचना करता है, पर न मृगको बांधता है और न उसे मारता है, उस समय वह पुरुष कायिकी, आधिकरणिकी और प्रादोषिकी - इन तीन क्रियाओं से स्पृष्ट होता है ।
जो भव्य कूटपाश की व्यवस्था कर जो (बंधन आदि करेगा) कूटपाश को बांधता है और मृग को भी बांधता है, पर उसे मारता नहीं, उस समय वह पुरुष कायिकी, आधिकरणिकी,
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