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________________ नव पदार्थ १८. भगवती सूत्र के सातवें शतक के छठे उद्देशक में उल्लेख है कि अठारह पापों का सेवन करने से कर्कश वेदनीय कर्म का बंध होता है और इन पापों का सेवन न करने से अकर्कश वेदनीय कर्म का बंध होता है। १९-२०. कालोदाई ने भगवान से प्रश्न किया कि कल्याणकारी कर्मों का बंध कैसे होता है? उत्तर में भगवान ने बतलाता कि अठारह पाप स्थानकों के सेवन नहीं करने से कल्याणकारी कर्म का बंध होता है और इन्हीं अठारह पाप स्थानकों के सेवन से अकल्याणकारी कर्म का बंध होता है। यह रहस्य भगवती सूत्र के सातवें शतक के दशवें उद्देशक में है। २१-२२. प्राण, भूत, जीव और सत्त्व तथा बहु प्राण, भूत, जीव और सत्त्व इनके प्रति दया लाकर अनुकम्पा करने से, दुःख उत्पन्न नहीं करने से, शोक उत्पन्न नहीं करने से, न झूराने से, न रुलाने से, न पीटने से और परितापना न देने से इस प्रकार चवदह बोलों से सातावेदनीय कर्म का बंध होता है। २३. महा आरम्भ, महापरिग्रह, पंचेन्द्रिय जीव की घात तथा मद्य-मांस के भक्षण से पाप-संचय कर जीव नरक में जाता है। २४. माया, कपट, गूढ माया, झूठ बोलना, कूट तोल और कूट माप इस पाप से जीव तिर्यंच होता है। २५. प्रकृति की भद्रता, प्रकृति की विनीतता, दया और अमात्सर्य भाव इनसे मनुष्य आयुष्य का बंध होता है। इन क्रियाओं को निरवद्य पहचानें। २६. सराग अवस्था का साधुपन से तथा श्रावक के बारह व्रत से, बाल तपस्या और अकाम निर्जरा इनसे जीव देवगति में उत्पन्न होता है। २७-२८. काय की सरलता, भावों की सरलता, भाषा की सरलता तथा कथनीकरनी की समानता से जीव शुभ नामकर्म का बंध करता है। इन्हीं चार बातों की
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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