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________________ ६० भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ १८. करकस वेदनी बंधे जीवरें रे लाल, अठारें पाप सेव्यां बंधाय हो। नही सेव्यां बंधे अकरकस वेदनी रे लाल, भगोती सातमा सतक छठा मांहि हो।। १९. कालोदाई पूछ्यों भगवान ने रे लाल, सुतर भगोती माहि ए रेस हो। किल्याणकारी कर्म किण विध बंधे रे लाल, सातमें सतक दसमें उदेश हो।। २०. अठारें पाप थांनक नही सेवीयां रे लाल, किल्याणकारी कर्म बंधाय हो। अठारे पाप थानक सेवे तेहसूं रे लाल, बंधे अकिल्याणकारी कर्म आय हो।। २१. प्राण भूत जीव सत्व में रे लाल, बहु सबदे च्यारूंई माहि हो। त्यांरी करें अणुकम्पा दया आणने रे लाल, दुख सोग उपजावें नाहि हो।। २२. अझूरणया ने अतिप्पणया रे लाल, अपिट्टणया ने अपरिताप हो। यां चवदें सूं बंधे साता वेदनी रे लाल, यां उलटां सूं बंधे असाता पाप हो।। २३. माहा आरंभी ने माहा परिग्रही रे लाल, करें पचिंद्री नी घात हो। मद मांस तणो भखण करे रे लाल, तिण पाप सूं नरक में जात हो।। २४. माया कपट ने गूढ़ माया करे रे लाल, वलें बोलें मूंसावाय हो। कूड़ा तोला में मापा करे रे लाल, तिण पाप सूं तिरजंच थाय हो।। २५. प्रकत रो भद्रीक ने वनीत छे रे लाल, दया ने अमछरभाव जाण हो। तिणसूं बंधे आउखो मिनख रो रे लाल, ते करणी निरवद पिछांण हो।। २६. पाले सराग पणे साधूपणो रे लाल, वले श्रावक रा वरत बार हो। बाल तपसा ने अकांम निरजरा रे लाल, यां सूं पांमें सुर अवतार हो।। २७. काया सरल भाव सरल सूं रे लाल, वले भाषा सरल पिछांण हो। जेहवो करें तेहवो मुख सू कहें रे लाल, यां सू बंधे सुभ नाम कर्म जांण हो।।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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