SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नव पदार्थ ८-९. हिंसा न करना, मृषा न बोलना और तथारूप श्रमण-निर्ग्रथ को वन्दननमस्कार कर चारों प्रकार का प्रीतिकर आहार देना इन तीन कारणों से शुभ दीर्घ आयुष्य का बंध होता है । वह आयुष्य पुण्य के अन्तर्गत है । यह ठाणं सूत्र के तीसरे स्थान (सू. १९-२०) में उल्लिखित है । ५९ १०. यही पाठ भगवती सूत्र के पंचम शतक के षष्ठ उद्देशक में है। किसी को शंका हो तो देखकर निर्णय कर ले। इसमें जरा भी झूठ नहीं है । ११. वंदना करता हुआ जीव नीच गोत्र कर्म का क्षय करता है और उसके उच्च गोत्र कर्म का बंध होता है । उत्तराध्ययन सूत्र के उनतीसवें अध्ययन (सू. ११) वंदना करने की जिन - आज्ञा है । १२. उत्तराध्ययन सूत्र के उनतीसवें अध्ययन (सू. २४) में कहा है कि धर्म कथा करता हुआ जीव शुभ कर्म का बंध करता है। साथ ही वहां धर्म कथा से निर्जरा होने का भी उल्लेख है। १३. उत्तराध्ययन सूत्र के उनतीसवें अध्ययन (सू. ४४) में यह भी कहा है कि वैयावृत्य करने से तीर्थंकर नामकर्म का बंध होता है। वहां भी निर्जरा धर्म है । १४. ज्ञाता सूत्र के आठवें अध्ययन (सू. १८) में उल्लेख है कि जीव बीस उपक्रमों से कर्मों की कोटि का क्षय करता है और तीर्थंकर नाम कर्म का बंध करता है । १५. विपाक सूत्र (दूसरा श्रुत स्कंध ) में उल्लेख है कि सुबाहु कुमार आदि दस जनों ने साधुओं को अशन आदि देकर मनुष्य आयुष्य का बंधन किया । १६-१७. भगवती सूत्र के सातवें शतक के छठे उद्देशक में उल्लेख है कि प्राण, भूत, जीव और सत्त्व को दुःख नहीं देने से, शोक उत्पन्न नहीं करने से व न झूराने से, न रुलाने से, न पीटने से और परिताप न देने से इन छः प्रकारों से साता वेदनीय कर्म का बंध होता है और इसके विपरीत आचरण करने से असातावेदनीय कर्म का बंध होता है।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy