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________________ अनुकम्पा री चौपई ३०७ १३. वे कहते हैं भगवान ने प्रमाद का सेवन नहीं किया, और उसके साथ यह भी कहते हैं, यह भगवान का प्रमाद था। विकल लोगों के न्याय, निर्णय कुछ भी नहीं है। ऐसे ही वे असत्य एवं बेमेल (विरोधाभासी) बातें करते रहते हैं। १४. छद्मस्थ भगवान ने मोहकर्म के उदय से सावद्यकार्य का सेवन किया। वह अज्ञात एवं अनुपयोग अवस्था थी। बुद्धिमानों! ध्यान लगाकर इस बात को सुनें। १५. भगवान ने दश स्वप्न भी देखे थे। उनका पाप लगा। वह भी दशों स्वप्नों का अलग-अलग पाप लगा। विज्ञजनों को उसमें शंका नहीं करनी चाहिए। १६. कई लोग कहते हैं कि गृहत्याग के पश्चात् भगवान ने अंशमात्र भी पाप का सेवन नहीं किया। यदि वे स्वप्न देखने में पाप की प्ररूपणा करेंगे तो उनके मतानुसार उनकी श्रद्धा में ही धूल है। १७-१८. छद्मस्थ को सात बातों से पहचाना जाता है, यह स्थानांग सूत्र (स्थान ७, सूत्र २८) में वर्णन है। हिंसा करने से, झूठ बोलने से, चोरी करने से, शब्दादि विषयों का रागात्मक भाव से आस्वादन करने से, पूजा और सम्मान की मन में इच्छा करने से, कदाचित् सावध-आहारादि का भोग करने से, और कथनी-करनी की विषमता से। १९. ये सातों ही सावद्य-स्थान कहे गए हैं। छद्मस्थ कभी-कभी इनका सेवन कर लेता है। उनके लिए भी यथायोग्य प्रायश्चित्त का विधान है, ज्ञात-अज्ञात में सेवन किए गए सभी अतिचारों का विचार किया गया है। २०. इन पूर्वोक्त सातों ही बातों का केवली सेवन नहीं करते और छद्मस्थ भी उनका निरंतर सेवन नहीं करते। मोहकर्म का उदय होने से ही सेवन करते हैं। यदि शंका हो तो सूत्रों में देख लें।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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