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________________ अनुकम्पा री चौपई २७५ ३५. एक योजन (चार कोश) प्रमाण परिमण्डल में समवसरण लगता है। अरिहंत देव की देशना सुनने के लिए वहां स्त्री-पुरूषों के समूह आते हैं, जाते हैं। भगवान उन्हें विविध प्रकार के विषय सुनाते हैं। ३६. चार कोश प्रमाण उस क्षेत्र में त्रस, स्थावर अनेक जीव थे। आते-जाते स्त्री-पुरूषों के बिना उपयोग के कारण पैरों में आकर अनेक जीव यों ही मर गए होंगे, किन्तु भगवान ने उन जीवों को बताया हो, ऐसा कहीं भी नहीं आता। ३७. नंदन मणिहारा मेंढ़क के भव में भगवान की वंदना के लिए जा रहा था। राजा श्रेणिक के घोड़े के पैर के नीचे आकर वह मर गया। महावीर स्वामी ने साधुओं को सामने भेजकर उसे क्यों नहीं बचाया?। ३८. गृहस्थ के पैर के नीचे जीव आते हों, साधु उसे बताए, यह कहीं भी वर्णन नहीं है। बहु-कर्मा लोगों को भ्रमित करने के लिए यह भी कुगुरू लोगों का ही डाला हुआ फांस है। ३९. ये तब साधुओं का नाम तो अलग कर देते हैं, श्रावकों की चर्चा मुंह पर लाते हैं। साधु के द्वारा मरते हुए जीवों को साधु बताते हैं, और श्रावक के द्वारा मरते हुए जीवों को श्रावक बताते हैं। ४०. अज्ञानी लोग शास्त्र ज्ञान के बल बिना बोलते हैं। साधुओं की तरह श्रावकों का भी परस्पर संभोग बतलाते हैं। ये कपोल कल्पित बातें मुंह से यों ही चलाते रहते हैं। भव्यजनों। इसका ध्यान लगाकर न्याय सुन। ४१. किसी साधु के पैर के नीचे आकर कोई जीव मर रहा है, संघ का साधु उसे देखते हुए भी यदि नहीं बताता है तो वह अरिहंत भगवान की आज्ञा का भंग करता है। पाप का बंध करता है, और विराधक हो जाता है।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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