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________________ अनुकम्पा री चौपई २७३ २७. वेशधारी साधु सहज में उसके साथ चल रहे हैं। अचक्षु पुरूष के पैरों के नीचे मरते जीवों को भी देख रहे हैं। यदि उन कदम-कदम पर मरने वाले जीवों को नहीं बताते तो उनकी मान्यता को गलत मान लेना चाहिए। २८. उस अचक्षु पुरूष को बता बताकर जीवों को बचाना चाहिए, या फिर प्रमार्जन करके उन्हें हटाना चाहिए। ऐसा धर्म करने से यदि स्वयं लज्जित होते हैं तो कौन दूसरा इस मत को मानेगा?। २९. इल्ली और सुलसल्यों सहित आटा है। किसी गृहस्थ से वह रास्ते में गिर रहा है। ग्रीष्म ऋतु की तपती धूल पर गिरते ही उन जीवों के शरीर और प्राण अलग हो रहे हैं। ३०. आटा गिर रहा है, यह उस गृहस्थ के ध्यान में नहीं है, किन्तु वेशधारी साधु की दृष्टि में आ गया। वे पैर से दबाकर मरने वालों को जब बताते हैं तो गिरते आटे से मरने वाले जीवों को क्यों नहीं बताते?। ३१. ऐसे गृहस्थ के अनेक उपकरणों से त्रस, स्थावर जीव मरे हैं और मरते रहेंगे यदि वे पैर के नीचे आने वाले जीवों को उन्हें बतलाते हैं तो सभी जगह बतलाना पड़ेगा। ३२. किसी जगह वे जीवों को बतलाते हैं और किसी जग़ह वे ऐसा कहने में संकोच करते हैं। बिना समझे जो अपनी श्रद्धा की प्ररूपणा करते हैं, वे मूर्ख की तरह पीपल को बांधकर खींचते हैं। ३३. जब वे अपने उत्तर को कदम-कदम पर अटकते हुये देखते हैं तो कभीकभी वे बड़े अज्ञानी सभी प्रसंगों पर "जीव बतलाने" की बात स्वीकार कर लेते हैं। यह सब अपने असत्य-पक्ष को सुरक्षित रखने के लिए करते हैं, परन्तु बुद्धिमान उसकी बात को बिल्कुल नहीं मानते। ३४. गृहस्थ के जीने-मरने की बांछा नहीं करनी चाहिए। वह बांछा करके बताने में पाप कर्म का बंध होता है। राग द्वेष रहित होकर तटस्थ रहना-यही श्री जिनेश्वर देव का धर्म है।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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