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________________ अनुकम्पा री चौपई २०७ ३. इस प्रकार यदि कोई बांधता है, बंधवाता है तथा अनुमोदन करता है तो उस साधु का संयम भंग हो जाता है। ये तो सारे सावद्य कार्य हैं। इनका साधु ने प्रत्याख्यान किया है ॥ ४. साधु उन प्राणियों का न जीना चाहता है और न मरना चाहता है। फिर वह क्यों बांधेगा और क्यों छुड़ाएगा ? जिन साधुओं की मुक्ति से प्रीति है, वे किसकी रखवाली करेंगे। ५. गृहस्थ के घर में आग लगी है। घर से बाहर नहीं निकला जाता। जलते हुए जीव बिलबिलाट करते हैं, परन्तु साधु जाकर कपाट नहीं खोलता | I ६-७. संसार में द्रव्य और भाव दोनों ही प्रकार की आग लगी है । उसमें कुछ लोग वैरागी होते हैं। उनकी अनुकम्पा करके साधु उपदेश के द्वारा उन्हें समझाते हैं । जन्म और मृत्यु की आग से उन्हें बाहर निकालते हैं। उनका कार्य शिखर चढ़ाते हैं, सिद्ध करते हैं। उन्हें ज्ञान आदि की ऐसी डोरी पकड़ाते हैं, जिससे वे आठों ही कर्म तोड़ देते हैं। ८. अनुकम्पा करने से दण्ड आता है, इस परमार्थ ( वास्तविकता) को विरल व्यक्ति ही जान पाते हैं । निशीथसूत्र के १२वें उद्देशक (सूत्र १,२) में भगवान ने दया का रहस्य बताया है ॥ ९. कुछ लोग कहते हैं, साधु बंधे प्राणियों को छोड़ सकता है यह सूत्र कहा है, परन्तु यह अर्थ अयथार्थ है । शास्त्रों के गलत अर्थ बताकर कुगुरुओं ने भोले लोगों को भ्रमित किया है। 1 -- १०-११. सिंह, बाघ, बिल्ली आदि हिंसक जीवों को देखकर यदि आचारी(साधु) यह कहे . • इन्हें मारो तो साधु को हिंसा लगती है । प्रथम महाव्रत खण्डित होता है। यदि साधु यह कहे इन्हें मत मारो तो उनके प्रति राग भाव आता है और तीसरे करण से हिंसा आदि का अनुमोदन होता है । सूत्रकृतांग सूत्र (श्रु २, अ. ५, श्लोक ३०) इसके लिए साक्षी है, भगवान ने उसमें ऐसा कहा है। —
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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