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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ ३. इम बांधे बंधावें हुवें राजी, तिणरोंइ संजम गयो भाजी।
ए तो सावध कांमा जांणों, तिणरा साधां कीया पचखांणों॥
४. जीवणों मरणों नही चावें, साधु क्यांने बंधावें छूडावें।
ज्यांरी लागी मुगत सूं ताली, नही करें तके रूखवाली॥
५. ग्रहस्थ रे लागी लायों, घर बारें नीकलीयों न जायों।
बळतो जीव बिल-बिल बोलें, साधू जाय कमाड न खोलें।
६. दबे भावें लाय लागी, तिण माहे केयक वेंरागी।
तिणारी अणुकंपा आवें, उपदेश देई समझावें॥
७.
जन्म मरण री लाय थी काढें, उणरों काम सिरांडें चालें। पकडावें ग्यांनादिक डोरी, तिण थी आठूई कर्म दें तोडी॥
८. अणुकंपा कीयां डंड आवें, परमार्थ विरला पावें।
नसीत नो बारमों उदेशों, जिण भाख्यों दया नो रेसों॥
९.
छोडें साध सूतर में कहें चाल्यों, ए तो अर्थ अणहूंतों घाल्यों। भोला ने कुगुरां बेंहकाया, कूडा कूडा अर्थ बताया॥
१०. सिंघ बाघादिक मंजारी, हंसक जीव देखी आचारी।
यांने मार कह्यां हंसा लागें, पेंहलोई महावरत भागें॥
११. मत मार कह्या उणरो रागी, तीजें करण हंसादिक लागी।
सूयगडाअंग साखी, श्री वीर गया , भाखी॥