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________________ अनुकम्पा री चौपई १९९ ११. जिनरक्षित ने करुणा करके रयणादेवी के सामने देखा। शेलक यक्ष ने उसे नीचे गिरा दिया और देवी ने आकर उसे खड्ग में पिरो लिया। इस अनुकम्पा को सावद्य समझें। १२. सुलसा हरिणैगमेषी देव की भक्ता थी। उसे दुःखी जानकर देव ने अनुकम्पा की। देवकी के छह पुत्रों को सुलसा के घर लाकर रख दिया। इस अनुकम्पा को सावध समझें। १३. हरिकेश मुनि यज्ञ-वाटक में आए। वहां उनको अशनादिक नहीं दिया। यक्षदेव ने अनुकम्पा करके ब्राह्मणों को रूधिरस्रावी बना दिया। इस अनुकम्पा को सावद्य समझें। १४. मेघकुमार जब गर्भ में था तब धारिणीरानी ने गर्भ-सुख के लिए अनेक उपाय किए। अनुकम्पा करके मनोज्ञ भोजन किए। इस अनुकम्पा को सावध समझें। १५. मित्रदेव ने अभयकुमार की अनुकम्पा करके धारिणी रानी के दोहद को पूरा किया। अकाल में वर्षा कर पानी बरसाया। इस अनुकम्पा को सावध समझें। १६. कृष्णजी ने नेमिनाथ भगवान की वंदना के लिए जाते समय एक पुरूष को कष्ट में देख कर उसे सहयोग दिया। उस पर अनुकम्पा की। एक ईंट उठा कर उसके घर रख दी। इस अनुकम्पा को सावध समझें। १७. दुःखी, कष्ट-प्राप्त तथा दरिद्री लोगों को देखकर कोई यदि उनके प्रति अनुकम्पा लाकर उन्हें गाजर, मूला आदि सचित्त (सजीव) वस्तुएं खिलाता है और सचित्त अनछाना पानी पिलाता है, इस अनुकम्पा को सावध समझें। १८. अपने द्वारा कष्ट प्राप्त करते जीवों को देख कर साधु अपने शरीर को संकोच कर टल जाते हैं। स्वयं पाप से डर कर उनकी हिंसा नहीं करते और न उन्हें अनुकंपा करके छाया में लाकर रखते हैं। यह अनुकंपा जिनेश्वर देव की आज्ञा में है।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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