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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ ११. जिणरखीयें कीधी अणुकंपा, रेणादेवी तिण साहमों जोयो। सेलकजख हेठो उतारयों, देवी आंण खडग मे पोयों।
आ अणुकंपा सावध जांणों॥
१२. भगता हिरणगवेषी नी सुलसा, कीधी अणुकंपा विलखी जांणी। छ बेटा देवकी रा जाया, सुलसा रें घर मेल्या आंणी।
आ अणुकंपा सावध जांणों॥
१३. जगनवाडें हरकेसी आया, असणादिक तेहनें नहीं दीथों। जक्ष देवता अणुकंपा आंणे, रूद्रवमंता ब्राह्मण कीधा।
आ अणुकंपा सावध जांणों॥
१४. मेघकुमर गर्भे हुंता जब, सुख रें तांई कीधा अनेक उपायों। धारणी रांणी कीधी अणुकंपा, मन गमता असणादिक खायों।
आ अणुकंपा सावध जांणों॥
१५. अभयकुमार नों मित्री देवता, तिण अभयकुमर री अणुकंपा आंणी। धारणी रांणी रो डोहलो पूरयों, अकाले विरखा करनें वरसायो पांणी।
आ अणुकंपा सावध जांणों।
१६. किस्नजी नेम वंदण ने जातां, एक पुरष नें दुखीयों जांणी। साज दीयों अणुकंपा कीधी, इंट उठाय उणरें घरे आंणी।
आ अणुकंपा सावध जांणों॥
१७. दुखीया दोरा देख दलद्री, अणुकंपा उणरी किण आंणी। गाजर-मूलादिक सचित खवारें, वले पावें काचों अणगल पांणी।
आ अणुकंपा सावध जांणों॥
१८. दुखीया जीव मारग माहे देखी, टल जाए साध संकोची काया। आप हणे नही पाप सूं डरतां, अणुकंपा आंण न मेलें छाया।
आ अणुकंपा जिण आगन्या में।