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________________ १९८ भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ ११. जिणरखीयें कीधी अणुकंपा, रेणादेवी तिण साहमों जोयो। सेलकजख हेठो उतारयों, देवी आंण खडग मे पोयों। आ अणुकंपा सावध जांणों॥ १२. भगता हिरणगवेषी नी सुलसा, कीधी अणुकंपा विलखी जांणी। छ बेटा देवकी रा जाया, सुलसा रें घर मेल्या आंणी। आ अणुकंपा सावध जांणों॥ १३. जगनवाडें हरकेसी आया, असणादिक तेहनें नहीं दीथों। जक्ष देवता अणुकंपा आंणे, रूद्रवमंता ब्राह्मण कीधा। आ अणुकंपा सावध जांणों॥ १४. मेघकुमर गर्भे हुंता जब, सुख रें तांई कीधा अनेक उपायों। धारणी रांणी कीधी अणुकंपा, मन गमता असणादिक खायों। आ अणुकंपा सावध जांणों॥ १५. अभयकुमार नों मित्री देवता, तिण अभयकुमर री अणुकंपा आंणी। धारणी रांणी रो डोहलो पूरयों, अकाले विरखा करनें वरसायो पांणी। आ अणुकंपा सावध जांणों। १६. किस्नजी नेम वंदण ने जातां, एक पुरष नें दुखीयों जांणी। साज दीयों अणुकंपा कीधी, इंट उठाय उणरें घरे आंणी। आ अणुकंपा सावध जांणों॥ १७. दुखीया दोरा देख दलद्री, अणुकंपा उणरी किण आंणी। गाजर-मूलादिक सचित खवारें, वले पावें काचों अणगल पांणी। आ अणुकंपा सावध जांणों॥ १८. दुखीया जीव मारग माहे देखी, टल जाए साध संकोची काया। आप हणे नही पाप सूं डरतां, अणुकंपा आंण न मेलें छाया। आ अणुकंपा जिण आगन्या में।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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