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________________ २०० भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ १९. उपाडे ने जों छाया मेलें तो, असंजती नी वीयावच लागी। आ अणुकंपा साध करें तों, जाए पांचूंई महावरत भागी। आ अणुकंपा सावध जांणों॥ २०. सो साध निषमकाल उनालें, पांणी विना हवें जुदा जीव काया। अणुकंपा आंणे ने असुध वेंहरावें, छ काय ना पीहर साध वचाया। आ अणुकंपा सावध जांणों॥ २१. गज सुखमाल ले नेम री आज्ञा, काउसग कीयों मसांण में जाई। सोमल आंण खीरा सिर घाल्या, सीस न धूण्यों दया दिल आई। आ अणुकंपा जिण आगन्या में।। २२. साध विनां अनेरा सर्व जीवां री, अणुकंपा आंणे साध बांधे बंधावें। तिणनें नसीत रे बारमें उदेसें, तिण साध में चोमासी प्रायछित आवें। आ अणुकंपा सावध जांणों॥ २३. रासड़ीयादिक सूंतस जीव बंध्या छे, ते तो भूख त्रिखादि सूं अतंत दुख पावं। त्यांने अणुकंपा आंणे ने छोडें छूडावें, तिण साध ने चोमासी प्राछित आवं। आ अणुकंपा सावध जांणों॥ २४. व्याध कुसटादिक रोगलो सुण ने, तिण उपर वेंद चलाए नें आवें। साजो कर अणुकंपा आंणे, गोली चूर्ण दे रोग गमावें। आ अणुकंपा सावध जांणों॥ २५. लबदधारी ना खेलादिक थी, सोंलेंई रोग जडा सूं जावें। ___वले जाणे साध ए रोग सूं मरसी, अणुकंपा आंणे रोग नहीं गमावें। आ अणुकंपा सावध जांणों॥ २६. जों अणुकंपा साध करें तों, उपदेस देई वेंराग चढावें। चोखें चित फेलों हाथ जोडें तों, च्यारूई आहार ना त्याग करावें। आ अणुकंपा जिण आगन्या में।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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