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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ ८. कदे तलाव रीतो हुवें, सर्व पाणी तणो हुवें सोष।
ज्यूं सर्व कर्मा नों सोपंत हुवें, रीता तलाव ज्यूं मोख।।
९. बंध तो छे आठ कर्मी तणो, ते पुदगल नी परजाय ।
तिण बंध तणी ओळखणा कहं, ते सुणजों चित ल्याय।।
ढाल : ११
(लय अइ अइ कर्म विडम्बना)
बंध पदारथ ओळखो।। १. बंध नीपजें , आश्व दुवार थी, तिण बंध में कह्यों पुन पापो जी।
ते पुन पाप तो द्रब रूप में, भावे बंध कह्यों जिण आपो जी।।
२. ज्यूं तीथंकर आय उपना, ते तो द्रव्ये तीथंकर जांणो जी।
भावे तीथंकर तो जिण समें, होसी तेरमें गुणठांणो जी।।
३. ज्यूं पुन में पाप लागों कह्यों, ते तों द्रब छे पुन ने पापो जो।
भावे पुन पाप तो उदें आयां हुसी, सुख दुःख सोग संतापो जो।।
४. तिण बंध तणा दोय भेद छे, एक पुन तणो बंध जांणों जी।
बीजो बंध में पाप रो, दोनें बंध री करजों पिछांणों जी।।
५. पुन नों बंध उदें हूआं, जीव ने साता सुख हुवें सोयो जी।
पाप नों बंध उदें हूआं, विविध पणे दुःख होयो जी।।
६. बंध उदें नही ज्यां लग जीव नें, सुख दुःख मूल न होय जी।
बंध तों छता रूप लागों रहें, फोडा न पाडें कोय जी।।
७. तिण बंध तणा च्यार भेद ,, त्यांने रूडी रीत पिछांणों जी।
प्रकतबंध में थितबंध दुसरी, अनुभाग में परदेस बंध जांणों जी।।