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बंध पदार्थ
दोहा
१. आठवां पदार्थ बंध है। उसने जीव को बांध रखा है। जिसने बंध पदार्थ को नहीं पहचाना, वह जीव मोहांध है।
२. बंध से जीव दबा रहता है। (उसके सर्व प्रदेश कर्मों से आच्छादित रहते हैं)। उसका कोई भी अंश जरा भी खुला नहीं रहता। उस बंध की प्रबलता के कारण जीव का जरा भी वश नहीं चलता।
३. जीव तालाब रूप है। उसमें पड़े हुए (स्थित) जल की तरह बंध को जानें। पुण्य-पाप निकलते हुए जलरूप हैं। इस प्रकार बंध को पहचानें।
४. एक जीव द्रव्य के असंख्यात प्रदेश होते हैं। सर्व प्रदेश आश्रव-द्वार हैं। सर्व प्रदेशों से कर्मों का प्रवेश होता है।
५. मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये पांच प्रधान आश्रव हैं। इन पांचों के बीस भेद हैं। पन्द्रह आश्रव योग आश्रव में समा जाते हैं।
६. जल के आने के नाले की तरह आश्रव कर्मों के आने के नाले हैं। उनको रोकने से संवर द्वार होता हैं, जिससे कर्मरूपी जल का आना रुक जाता है और तनिक भी बंध नहीं होता।
७. जिस तरह (सूर्य की गर्मी या उत्सिंचन से) तालाब का पानी घटता है, उसी प्रकार (तप आदि से) जीव के कर्म घटते हैं। उससे जीव अंश रूप में उज्ज्वल होता है, वह निर्जरा धर्म है।