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________________ नव पदार्थ १६१ ३९. स्वाध्याय तप पांच प्रकार का है। अर्थ और पाठ का विस्तारपूर्वक भाव सहित शुद्ध स्वाध्याय करने से कर्म भट (यौद्धा) का नाश होता है। ४०. आर्त और रौद्र ध्यान का निवारण कर धर्म और शुक्ल ध्यान को ध्याता है। इस प्रकार ध्यान ध्याते-ध्याते उत्कृष्ट ध्यान ध्याने से केवलज्ञान उत्पन्न होता है। ४१. व्युत्सर्ग का अर्थ है त्यागना। वह द्रव्य और भाव दो प्रकार का होता है। द्रव्य व्युत्सर्ग चार प्रकार का होता है। उसका विवरण सब कोई सुनें। ४२. शरीर को छोड़ना शरीर-व्युत्सर्ग है, इसी प्रकार गण-व्युत्सर्ग जानें। उपधि को छोड़ना उपधि-व्युत्सर्ग है, इसी प्रकार भक्त-पान-व्युत्सर्ग को पहचानें। ४३. भाव-व्युत्सर्ग के तीन भेद हैं (१) कषाय (२) संसार (३) कर्म । कषायव्युत्सर्ग चार प्रकार का है क्रोध, मान, माया, लोभ इन चारों कषायों को त्यागने से धर्म होता है। ४४. संसार-व्युत्सर्ग अर्थात् संसार का त्याग करना। उसके चार प्रकार हैं नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देवता। इनको त्याग कर इनसे अलग हो जाना संसारव्युत्सर्ग है। ४५. कर्म-व्युत्सर्ग आठ प्रकार का होता है। आठों ही कर्म त्याज्य होते हैं। जीव उनको ज्यों-ज्यों छोड़ता है, त्यों-त्यों वह हल्का होता है। ऐसी करनी से निर्जरा धर्म होता है। ४६. बारह प्रकार का तप निर्जरा की करनी है। जो सलक्ष्य तपस्या करता है, वह कर्मों को उदीर्ण कर उदय में लाकर बिखेर देता है। उसके निर्वाण नजदीक होगा। ४७. बारह प्रकार के तप करते समय जहां-जहां साधु के निरवद्य योगों का निरोध होता है, वहां-वहां तपस्या के साथ-साथ संवर होता है। उससे पुण्य का बंध रुक जाता है।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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