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________________ १६२ भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ ४८. इण तप माहिलो तप श्रावक करतां, कठे उसभ जोग रूंधाय जी। ___जब विरत संवर हुवें तपसा लारे, लागता पाप मिट जाय जी।। ४९. इण तप माहिलों तप इविरती करतां, तिणरे पिण कर्म कटाय जी। कोइ परत संसार करें इण तप थी, वेगों जाों मुगत रे माहि जी।। ५०. साध श्रावक समदिष्टी तपसा करतां, त्यारें उतकष्टी टलें कर्म छोत जी। कदा उतकष्टों रस आवें तिणरें, तो बंधे तीर्थंकर गोत जी।। ५१. तप थी आंणे संसार नों छेहडों, वले आंणे कर्मां रो अंत जी। इण तपसा तणे परतापें जीवडा, संसारी रो सिध होवंत जी।। ५२. कोड भवां रा कर्म संचीया हुवें तो, खिण में दियें खपाय जी। एहवों में तप रतन अमोलक, तिणरा गुण रो पार न आय जी।। ५३. निरजरा तो निरवद उजल हुवां थी, कर्म निरवरते हओ न्यार जी। तिण लेखें निरजरा निरवद कहीए, बीजूं तो निरवद नहीं , लिगार जी।। ५४. इण निरजरा तणी करणी छे निरवद, तिणसूं कर्मां री निरजरा होय जी। निरजरा में निरजरा री करणी, अं तो जूआ जूआ छे दोय जी।। ५५. निरजरा तो मोष तणो अंस निश्चें, देश थकी उजलो छे जीव जी। जिणरें निरजरा करण री चूंप लागी छ, तिण दीधी मुगत री नींव जी।। ५६. सहजां तो निरजरा अनादरी हवें छे, ते होय होय में मिट जाय जी। कर्म बंधण सूं निवरत्यों नाहि, संसार में गोता खाय जी।। ५७. निरजरा तणी करणी ओळखावण, जोड कीधी नाथ दुवारा मझार जी। समत अठारें वर्श छपनें, चेत विद बीज ने गुरवार जी।।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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