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________________ नव पदार्थ १५७ १९. अशुभ मन को रोक देना और शुभ मन को प्रवृत्त करना और इसी तरह वचन और काय को जानें। यह योग संलीनता तप होता है। २०. स्त्री, पशु और नपुंसक रहित स्थानक को शुद्ध-निर्दोष जानकर उसका सेवन करना तथा निर्दोष पीठ (आसन), पाट आदि का सेवन करना विविक्तशयनासन संलीनता तप है। २१. छह प्रकार का बाह्य तप कहा गया है। वह लोक प्रसिद्ध है। अब मैं भगवान द्वारा भाषित छह प्रकार का आभ्यन्तर तप कहता हूं। २२. प्रायश्चित्त दस प्रकार का कहा गया है। जो दोषों की आलोचना कर प्रायश्चित्त लेता है। वह कर्मों का क्षय कर आराधक बन शीघ्र मोक्ष में पहुंचता है। २३. विनय तप सात प्रकार का कहा गया है (१) ज्ञान (२) दर्शन (३) चारित्र (४) मन (५) वचन (६) काय और (७) लोक व्यवहार। उनका बहुत विस्तार है। २४. पांचों ज्ञान के गुणग्राम करना ज्ञानविनय है। दर्शनविनय के दो भेद हैं (१) शुश्रूषा और (२) अनाशातना। २५. बड़ों की शुश्रूषा करना, नत मस्तक हो उनकी वन्दना करना। वह शुश्रूषा दस प्रकार की कही गई है। उसके भिन्न-भिन्न नाम है। २६-२७. गुरु के आने पर खड़ा होना, आसन छोड़ना, आसन के लिए आमंत्रण करना, हर्षपूर्वक आसन देना, सत्कार और सम्मान देना, वन्दना कर हाथ जोड़कर खड़ा रहना, आते देखकर सामने जाना, जब तक गुरु खड़े रहें खड़ा रहना, जब जाएं तब पहुंचाने जाना शुश्रुषा विनय है। २८-२९. अनाशातनाविनय के जिनेश्वर ने पैंतालीस भेद कहे हैं। अर्हत्, और अर्हत् प्ररूपित धर्म, आचार्य और उपाध्याय, स्थविर, कुल, गण, संघ, क्रियावादी,
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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