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________________ १५८ भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ २९. थिवर कुल गण संघ नों विनों, किरीया वादी संभोगी जांण जी। मतग्यांनादिक पांचोई ग्यांन रो, ए पनरेंई बोल पिछांण जी।। ३०. यां पनरां बोलां में पांच ग्यान फेर कह्या छे, ते दीसे छे चारित सहीत जी। ओं पांच ग्यांन में फेर कह्या त्यांरी, विनां तणी ओर रीत जी।। ३१. यांरी आसातना टालणी में विनों करणों, भगत कर देंणो बहु सनमांन जी। ____ गुणग्रांम करे ने दीपावणा त्यांने, दर्शण विनों में सुध सरधांन जी।। ३२. सामायक आदि दे पांचोई चारित, त्यांरो विनो करणों जथाजोग जी। सेवा भगत त्यांरी हरष सूं करणी, त्यांसू करणों निरदोष संभोग जी।। ३३. सावध मन ने परों ३३. सावध मन में परों निवारें, ते सावध छे बारें प्रकार जी। बारें प्रकारें निरवद मन परवरतावें, तिणसूं निरजरा हुवें श्रीकार जी।। ३४. इमहिज सावध वचन बारे भेदें, तिण सावध में देवें निवार जी। निरवद वचन बोले निरदोषण, बारेंइ बोल वचन विचार जी।। ३५. काया अजेंणा सूं नही प्रवरतावें, तिणरा भेद कह्या सात जी। ___ ज्यूं सात भेद काया जेंणा सूं प्रवरतावें, जब कर्म तणी हुवें घात जी।। ३६. लोग ववहार विनों कह्यों सात प्रकारें, गुर समीपें वरतवों तांम जी। गुरवादिक रे छांदे चालणों, ग्यांनादिक हेतें करणों त्यांरों काम जी।। ३७. भणायो त्यारों विनों वीयावच करणी, आरत गवेष करणों त्यांरों कांम जी। प्रसताव अवसर नों जांण हुवेंणों, सर्व कार्य करणों अभिराम जी।। ३८. वीयावच तप छे दस प्रकारें, ते वीयावच साधां री जांण जी। कर्मां री कोड खपे छै तिण थी, नेड़ी हुवें जें निरवांण जी।। वीयावच ताप दस प्रकारे ते तीतच
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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