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________________ नव पदार्थ ढाल : १० १५३ कर्म काटने की यह शुद्ध करनी है । १. जीव का अंशरूप में उज्वल होना अनुपम निर्जरा है । अब निर्जरा की शुद्ध करनी का विवेचन करता हूं। उसे ध्यान पूर्वक सुनें । २ - ३. जिस तरह साबुन डालकर कपड़ों को तपाया जाता है और सावधानी से जल में छांटा जाता है । फिर जल से धोने से कपड़ों का मैल तत्काल छूट जाता है, उसी तरह आत्मा को तप द्वारा तपाया जाता है। ज्ञानरूपी जल में छांटा जाता है और अन्त में ध्यान रूपी जल में धोने से जीव का कर्मरूपी मैल दूर हो जाता है । ४. ज्ञानरूपी शुद्ध अच्छा साबुन, तपरूपी निर्मल नीर और धोबी की तरह अन्तर आत्मा है। जो अपने निज गुणरूपी कपड़ों को धोता है । ५. जो केवल कर्म - क्षय करने का कामी (इच्छुक ) है और किसी प्रकार की कामना नहीं है। वह एकांत निर्जरा की करनी है। उससे कर्म झड़ जाते हैं । ६. कर्म - क्षय करने की करनी उत्तम है, उसके बारह भेद हैं । उस करनी के करने से जीव उज्ज्वल होता है । उसे उत्साह पूर्वक सुनें । ७. जीव चारों प्रकार के आहार का यावज्जीवन प्रत्याख्यान कर अनशन करता है अथवा कुछ काल के लिए त्यागता है । ऐसी तपस्या सलक्ष्य करता है । ८. साधु के शुभ योगों का निरोध होने से संवर होता है और श्रावक के विरति संवर होता है । परन्तु कष्ट सहने से निर्जरा होती है । इसलिए उसे निर्जरा में समाविष्ट किया गया है। ९. जैसे-जैसे भूख 'और प्यास लगती है वैसे-वैसे अनंत कष्ट उत्पन्न होता है और वैसे-वैसे कर्म कट कर अलग होते जाते हैं । इस तरह प्रति समय अनन्त कर्म झड़ते हैं ।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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