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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१
ढाल : १०
(लय पूज्य भिखन जी रो समरण करतां)
आ सुध करणी छे कर्म काटण री।। १. देस थकी जीव उजल हुवों छे, ते तों निरजरा अनूप जी।
हिवें निरजरा तणी सुध करणी कहूं , ते सुणजों धर चूंप जी।।
२. ज्यूं साबू दे कपड़ा ने तपावें, पांणी सूं छांटें करें संभाल जी।
पछे पांणी सूं धोवें कपड़ा नें, जब मेल छंटें ततकाल जी।।
३. ज्यूं तप करने आतम में तपावें, ग्यांन जल सूं छांटे ताहि जी।
ध्यान रूप जल माहे झखोलें, जब कर्म मेंल छट जाय जी।।
४. ग्यांन रूप साबण सुध चोखें, तप रूपी निरमल नीर जी।
धोबी ज्यूं छे अंतर आत्मा, ते धोवे , निज गुण चीर जी।।
५. कामी छे एकंत कर्म काटण रो, ओर वंछा नही काय जी।
ते तो करणी एकंत निरजरा री, तिणसूं कर्म झड जाय जी।।
६. कर्म काटण री करणी चोखी, तिणरा छे बारें भेद जी।
तिण करणी कीयां जीव उजल हुवें ,, ते सुणजों आंण उमेद जी।।
७. अणसण करे च्यारूं आहार त्यागें, करें जावजीव पचखांण जी।
अथवा थोड़ा काल तांई त्यागें, एहवी तपसा करें जांण जांण जी।।
८. सुध जोग रूंध्या साधु रे हवों संवर, श्रावक रें विरत हइ ताहि जी।
पिण कष्ट सह्यां सूं निरजरा हुवें, तिणसूं घाल्यों , निरजरा माहि जी।।
९. ज्यूं ज्यूं भूख त्रिषा लागें, ज्यूं ज्यूं कष्ट उपजें अतंत जी।
ज्यूं ज्यूं कर्म कटे हुवे न्यारा, समें समें खिरे छे अनंत जी।।