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________________ नव पदार्थ १२५ १३. भण्डोपकरण (वस्त्र, पात्र आदि) से अजयणा करने को भी योग आश्रव जानें। शुचि-कुशाग्र का सेवन करना भी योग आश्रव है । उसके प्रत्याख्यान को व्रत संवर पहचानें । १४. हिंसा आदि जो पन्द्रह योग आश्रव कहे हैं । उनको त्यागने से विरति संवर होता है । उन पन्द्रहों को अशुभ योग में गिना गया है । निरवद्य योग उनसे भिन्न हैं I उनकी पहचान करें । १५. तीनों ही निरवद्य योगों के निरोध से अयोग संवर हो जाता है । इन बीसों ही संवरों का ब्यौरा कहा है, वे बीस पांच में ही समा जाते हैं । १६. कई कहते हैं कि कषाय और योग के प्रत्याख्यान का उल्लेख सूत्रों में आया । अतः उनका त्याग किए बिना संवर कैसे होगा ? अब उसकी पहचान करवाता हूं । १७. सूत्रों में शरीर - प्रत्याख्यान का भी उल्लेख है । वह शरीर से आत्मा के अलग होने से होता है । शरीर - प्रत्याख्यान की तरह ही कषाय व योग का प्रत्याख्यान होता है । १८. सामायिक आदि पांचों चारित्र सर्व विरति संवर हैं । पुलाक आदि छहों निर्ग्रथों को भी संवर पहचानें । १९. चारित्रावरणीय कर्म के क्षयोपशम से जीव को वैराग्य आता है। जिससे - भोगों से विरक्त होकर वह सर्व सावद्य प्रवृत्तियों का त्याग कर देता है । काम-' २०. सर्व सावद्य योग का सर्वथा त्याग कर देने से सर्व विरति संवर होता है । फिर अविरति का पाप सर्वथा नहीं लगता है । वह चारित्र गुणों की खान है । २१. सर्वप्रथम जीव सामायिक चारित्र को अंगीकार करता है। उसके मोहकर्म में रहता है । उस कर्मोदय से जो क्रिया होती है, उनसे पाप लगते हैं । उदय २२. शुभ ध्यान और शुभ लेश्या से मोहकर्म का उदय घटता है तब मोहकर्म के उदय से होने वाल कर्त्तव्य भी कम हो जाते हैं। इससे पाप कर्म भी कम लगते हैं ।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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