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________________ १२६ भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ २३. मोह कर्म जाबक उपसम हुवें, जब उपसम चारित हुवें ताहि हो। ___ जब जीव हुवें सीतलीभूत निरमलो, तिणरें पाप न लागें आय हो।। २४. मोहणी कर्म में जाबक खय हवां, खायक चारित हों जथाख्यात हो। जब सीतलभूत हूओ जीव निरमलो, तिणरें पाप न लागे अंसमात हो।। २५. सामायक चारत लीयें छे उदीर में, सावद्य जोग रा करें पचखांण हो। उपसम चारित आवें मोह उपसम्यां, ते चारित इग्यारमें गुणठांण हो।। २६. खायक चारित आवें मोह कर्म नें खय कीयां, पिण नावें कीयां पचखांण हो। ते आवें सुकल ध्यान ध्यायां थकां, चारित छहले तीन गुणठांण हो।। २७. चारितावर्णी खयउपसम हुआं, खयउपसम चारित आवें निधन हो। ते उपसम हुआ उपसम चारित हुवें, खय हूआं खायक चारित प्रधान हो।। २८. चारित निज गुण जीव रा जिण कह्या, ते जीव सूं न्यारा नहीं थाय हो। ते मोहणी कर्म अलगा हूआं परगट्या, त्यां गुणां सु हुआ मुनीराय हो।। २९. चारितावर्णी ते मोहणी कर्म छ, तिणरा अनंत अनंत प्रदेस हो। तिणरा उदा सूं निज गुण विगडीया, तिणसूं जीव में अतंत कलेस हो।। ३०. तिण कर्म रा अनंत प्रदेस अलगा हूआं, जब अनंत गुण उजलो थाय हो। जब सावध जोग में पचख्या में सर्वथा, ते सर्व विरत संवर जें ताहि हो।। ३१. जीव उजलो हुवो ते तो हुइ निरजरा, विरत संवर सूं रुकीया पाप कर्म हो। नवा पाप न लागें विरत संवर थकी, एहवों छे चारित धर्म हो।।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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